रामदेव Vs एलोपैथ डॉक्टर #ATLivestream #Covid19

रामदेव Vs एलोपैथ डॉक्टर #ATLivestream #Covid19

           

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"आपके समाज ने स्वयं इस खूबसूरत सेवाभावी प्रोफेशन को बिज़नेस बनाया है, फिर आप इन अस्पतालों से मुफ्त सेवा की आशा कैसे कर सकते हैं?"

प्राइवेट अस्पताल तो उसी दिन बिज़नेस बन गए थे, जिस दिन डॉक्टर्स और अस्पतालों पर कन्ज़्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट लगा कर आपने उन्हें मोबाइल, फ्रिज, टीवी बेचने वाले व्यवसायियों की श्रेणी में ला खड़ा किया था।

@क्या किसी वकील पर आज तक इस लिए जुर्माना लगा कि उसने केस में लापरवाही की ? क्या कभी किसी टीचर, स्कूल या शुद्ध व्यवसाय की दृष्टि से खोले गए किसी कोचिंग सेंटर पर इसलिए जुर्माना लगा कि उसकी लापरवाही से छात्र परीक्षा में फेल हुआ?

@आपका पॉल्युशन कंट्रोल बोर्ड अस्पतालों को उद्योगों की सबसे खतरनाक "रेड इंडस्ट्री" की श्रेणी मे रखता है, और पर्यावरण नियंत्रण के सबसे कड़े कानून उन पर लागू होते हैं। कचरे की भी बार कोडिंग करने को कहता है, आपका पर्यावरण कानून।

@आप शराब की बोतल बनाने की फैक्ट्री लगाओ तो सरकार MSME मानकर आपको सस्ता लोन देगी, सब्सिडी देगी, सस्ती बिजली देगी; लेकिन अस्पताल को महंगी बिजली मिलती है शुद्ध व्यावसायिक दरों पर।

@इस देश मे शायद ही कोई दूसरा व्यवसाय या बिज़नेस हो जिस पर अस्पतालों से ज्यादा नियम कानून लागू होते हों।
वो सरकारें जिनके खुद के अस्पताल दुर्दशा, आवारा पशुओं के आतंक , गंदगी और अव्यवस्था के लिए विश्व भर में कुख्यात हैं, प्राइवेट अस्पतालों से क्वालिटी के NABH (National Accreditation Board For Hospitals) सर्टिफिकेट मांगती हैं। एक नया क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट चाहिए। एक ऐसा एक्ट जिसके दायरे से सरकारी अस्पतालों को बाहर रख कर प्राइवेट अस्पतालों पर नकेल कसी जा सके।

@एलोपैथी डॉक्टरों की श्रेणी में आयुष, होमियोपैथी को लाकर खड़ा कर दिया। उन्हें एलोपैथी के बराबर अधिकार दे दिया, लेकिन उन पर कोई एक्ट या कानून नही थोपे गए।

@एक झोला छाप भी खुद को डॉक्टर बता कर एलोपैथी वालों से बराबरी करता है, क्या इसी तरह वकालत या इंजीनियर का काम बिना डिग्री वाले कर सकते हैं ?

हमारी अदालतें जहाँ प्रार्थी की पीढियां गुज़र जाती हैं, पर न्याय नही मिलता ऐसी अदालतें डॉक्टर्स से सौ प्रतिशत सही, सटीक और त्वरित इलाज़ की अपेक्षा रखती हैं। इलाज़ में ज़रा सी चूक या देरी हो तो लाखों के जुर्माने लगा कर हर दिन उनका एनकाउंटर किया जाता है। जब कि इल़ाज की जटिलता और सीमितता को सिर्फ डॉक्टर ही समझ सकते हैं।
@देश मे कोई भी आपदा आती है, रेस्क्यू टीम के साथ ही डॉक्टर्स को भी तुरंत वहां पहुचना पड़ता है।

@NDRF की टीम, फौजी उस सबों को खूब वाहवाही मिलती है, पर डॉक्टर्स को नही। अभी कोरोना आपदा में डॉक्टर्स जी जान से काम करते जा रहे है, परिवार से तीन महीने से नही मिल पाए है। क्या आप 6 घंटे बिना पेशाब किये, बिना पानी पिये रह सकते हैं ? डॉक्टर्स रह रहे हैं। कई मकान मालिक इन्हें उनका घर छोड़ने को बाध्य करते हैं ।

@ओवर टाइम काम करने का सरकार कुछ भी नही देती। इनकी मृत्यु हो जाये, तो एक फौजी को कितने compensation और honor मिलते हैं, पर डॉक्टर्स इन सब के हकदार नही है ?

@रोगियों के परिजनों को ये नही पता होता है कि वे प्रायवेट अस्पतालों में जो पैसे देते हैं, उसमें डॉक्टर्स को उसका 10-15 प्रतिशत भी नही मिलता। लेकिन अस्पतालों द्वारा अधिक पैसे लिए जाने पर वे डॉक्टर्स को लुटेरा कहते हैं।

@सरकार दूसरे देशों की अपेक्षा स्वास्थ्य पर जी डी पी का बहुत कम खर्च करती है, लेकिन हर खामियों के लिए रोगी डॉक्टर्स को दोषी ठहराते हैं।



प्रतिवाद के बिन्दु है। न प्रयोगधर्मिता पर कोई कुठाराघात है न शोध और अनुसंधान पर; परन्तु चमत्कार दिखा कर और प्रचार माध्यमों के सहारे सिर्फ़ व्यवसाय साधने की ग़रज़ से, अनियन्त्रित अराजकता, आम जनों के लिये काल के ग्रास उपस्थित करेगी। सॉंडे का तेल बेचनेवाले, बचपन की तथाकथित गलत आदतो और लिंग के टेंडें पन को ठीक करने का दावा करने वाले, उसकी लम्बाई बुढ़ाने वाले, सड़क पर ज़मीनें की गर्दन काट कर जोड़ने वाले, ईसाई चंगाई इलाज करने वाले; झाड़ फूंक, टोना टुटका, मानव बलि, जीभ काट कर चँढाना, ओझागिरी में मरीज़ को खूब पीटना, मारना और हिंसा करना, तंन्त्रप्रयोग और औलाद के नाम पर परकीया संभोग, आदि के नाम पर हो रही देह व्यापार को नियन्त्रित और अनुशासित करने का आपके पास क्या उपाय है । सिर्फ़ दार्शनिक हो कर नहीं, वरन् वास्तविक हक़ीक़ी दुनियाँ में ....कहें?

हर चमकदार चीज़ सोना नहीं होती। सोना होगा तो पहचाना जायेगा पर पीतल को पीतल कहिये, सोना कह कर धोका मत दीजिये। सर्दी खांसी में इम्मयूनिटी बढ़ाने का के लाईसेन्स पहले से था। उतना ही स्वीकृत आज भी है, पर उससे कोरोना ठीक करने का दावा करना छोटे मुँह बड़ी बात है। इस छल के लिये सार्वजनिक माफ़ी माँगनी चाहिए।

सस्ते में धोखाधड़ी करके, कोयले को हीरा और पीतल को सोना कह कर बेचो तो कोई उसे क्यों ख़रीदे? क्या दवा बेच रहे हो या छल?

प्रयोग करिये, अच्छा है, पर पारदर्शिता के साथ, यह सत्य सार्वजनिक करिये कि हम सिर्फ़ प्रयोग करके देख रहें है। एलोपैथी की तरह विनम्रतापूर्वक स्वीकार करिये कि हम अज्ञानी है और ज्ञान प्राप्ति को आतुर हैं। मिलने पर धोषणा करेंगे। न मिलने पर भी। उचित सेम्पिल साईज़. होगा। इन्फार्म्ड कन्सेन्ट लेने के बाद, डबल ब्लाईन्ड रेन्डेमाईज़ड प्लेसिबो कन्ट्रोल होगा। मल्टी सेन्ट्रिक ट्रायल होंगे। मैटाएनालिसिस करेंगे। अपनी सीमाओं और कमज़ोरियों पर खुल कर बात करेंगे और उसमें सुधार के लिये निरन्तर प्रयन्शील रहेंगे।

एलोपैथी का वैज्ञानिक चिन्तन भारत की संस्कृति में आयातित और विजातीय है। विज्ञान सन्देह से शुरू कर विश्वास तक पहुँचता है। वो बिना तर्क और प्रमाण न स्वीकार करता है न ही अस्वीकार, वरन् अपनी ताक़त, अपनी सीमाये, और अपने दोष सार्वजनिक तौर पर धोषित करता है।

अपनी कमज़ोरियों का सार्वजनिक स्वीकार, उन्हें कम करने के लिये निरन्तर शोध और अनुसन्धान, के साथभविष्योनमुखी दृष्टि हमारे उत्कर्ष पथ पर हमारी बड़ी ताक़त है। नये शोध के परिणाम प्राप्त होने पर, उसकी रोशनी में बदलने को तत्पर रहना हमारे विकास का संकल्पित मार्ग।


ये दोनों डाक्टरों के भाषा और बोलने के तरिकों पर गौर कीजिए ये चर्चा नहीं बल्कि योग-आयुर्वेद अर्थात भारतीय चिकित्सा पद्धति को नगण्य अथवा शून्य बताने के लिए बैठे हैं

जब योग में कोई साइंस नहीं है तो 21जून को पूरा विश्व अंतरराष्ट्रीय योग दिवस क्यों मनाता है ? ,

जो व्यक्ति योग-आयुर्वेद को प्रमाणिक तौर पर करोडो़ं लोंगों को आरोग्य दे रहा उसे स्वीकार क्यों नहीं कर रहें हैं ,

जब लाल बहादूर शास्त्री जी देश को उपवास करने का निर्देश दे सकते है तो क्या आप संकठ की इस घड़ी में देश को योग आयुर्वेद से जीवन रक्षा का निर्देश नहीं दे सकते ।

देश को कहां ले जाना चाहते हैं कैसे देश आत्मनिर्भर बनेगा ,

देश का नागरिक संकठ के इस घड़ी में ठीक से एक वक्त का भोजन नहीं ले पा रहा है और आप करोडो़ं रुपये दवा के नाम पर व्यय कर रहें है एक योगी और 500वैज्ञानिक दिन-रात मेंहनत करके कोरोनिल बनाई पुरस्कार देने के बजाय उनका उपहास किया जा रहा , क्या आप संकठ की इस घड़ी में देश को कोरोनिल नहीं बटवा सकते है, देश को उसके उपयोग का निर्देश नहीं दे सकते हैं, विदेशियों को देश का पैसा दे कर वैक्सिन मगवाने और लगवाने कि बुद्धी है लेकिन योग-आयुर्वेद बटवाने की बुद्धी नहीं है।
देश को कमजोर बना रहें हैं देश आप सभी लोगों को कभी माफ नहीं करेगा। अभी भी समय है देश को योग-आयुर्वेद अपनाने का निर्देश दो और पूरे विश्व की भी योग-आयुर्वेद से रक्षा करों नहीं चुल्लु भर पानी में सब डूब मरो। अंग्रेज चले गये उनके मानस पुत्र आज भी हैं
वेदों की ओर लौटो।
जय हिंद्


*यह मेरा बहम है वह वास्तव में ही है*

कोरोना की सबसे बड़ी दवाई तो टूलकिट है भाई !!!

टूलकिट के सामने आते ही , केवल सामने आते ही दवाइयों का अभाव समाप्त हो गया , कालाबाजारी समाप्त हो गयी , रेमडिसिविर की माँग समाप्त हो गयी ; यही नहीं , WHO को भी ज्ञान प्राप्त हो गया और WHO ने रेमडिसिविर को कोरोना के इलाज से ही हटा दिया । ... उल्लेखनीय है कि रेमडिसिविर पहले भी कोरोना की दवाई नहीं थी , फिर ऐसा क्या किया गया कि रेमडिसिविर की लाखों , करोड़ों डोज मुँहमाँगी कीमत पर बिकी और इसी रेमडिसिविर के कारण अनेकानेक लोग मृत्यु को प्राप्त हुए ।

टूलकिट के सामने आते ही , केवल सामने आते ही पूरे देश में ऑक्सीजन की कमी दूर हो गयी । अब ऑक्सीजन की कोई पूछ ही नहीं रही ।

टूलकिट के सामने आते ही , केवल सामने आते ही देश में लगभग 50% ICU बेड खाली हो गये । अभी दस दिन पहले देश में ऐसे 10,000 से अधिक बेड की कमी थी ।

टूलकिट के सामने आते ही , केवल सामने आते ही गंगा में लाशें बहनी बंद हो गयीं ; जलती चिता की चर्चा पर विराम लग गया ; श्मशान से हो रही पत्रकारिता खो गयी ; कोरोना से हुई मौत का दिन-रात का प्रसारण बन्द हो गया ; मौत पर अनवरत चल रही राजनीति शांत हो गयी ।

टूलकिट के सामने आते ही , केवल सामने आते ही देश की लगभग सभी मीडिया-संस्थानों की रुचियाँ बदल गयीं , उनके लक्ष्य बदल गये ; वैक्सीन पर ज्ञान देने वाले मर गये ; लगातार नकारात्मक संदेश देने वाले छिप गये ; सारे आमी , वामी , कामी बिल में चले गये ।

एक बात तो स्पष्ट है कि जब तक टूलकिट सामने न था , संकट चरम पर था ; टूलकिट के सामने आते ही संकट नियंत्रण में है ।

अब टूलकिट या तो भगवान है या टूलकिट वाले हैं -
“ मौत के सौदागर "