पाकिस्तान में चचेरे-ममेरे-मौसेरे-फुफेरे भाइयों से शादी के कारण इस बीमारी का खतरा बढा

पाकिस्तान में जेनेटिक डिसऑर्डर के बढ़ रहे मामले

           

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लानत हो धिक्कार दलाल मीडिया

पाकिस्तान में ही नहीं भारत में भी मुसलमानों में ऐसी शादियां होती हैं। इससे कुछ नहीं होता।
अगर आपसी शादियों से कुछ होता तो सबसे पहले यहूदियों के यहां यह बीमारी होती क्यों कि छोटी कौमयूनिटि होने के कारण वे हज़ारों वर्षों से आपस में ही शादियां करते हैं। दक्षिण भारत में हिन्दू अपनी बहन की बेटी से शादी करते हैं। गयावाल पंडा भी चचेरे ममेरे में शादी करते हैं।

श्री कृष्ण और राम के जमाने में सगोत्र विवाह मान्य था कुंती श्री कृष्ण जी और सुभद्रा की फूफी थी ,

अर्जुन कुंती के पुत्र थे , इस प्रकार अर्जुन, सुभद्रा के ममेरे भाई थे। लेकिन उसका विवाह कृष्ण जी की भतीजी अर्थात बलराम की पुत्री शशीकला से हुआ था । श्री कृष्ण जी का लगाव राधा जी से था जो रिश्ते में उसकी मामी थी । पृथ्वीराज और जयचंद दोनों ऐतिहासिक महापुरुषों दोनों सगे मौसेरे भाई थे , पृथ्वीराज का जयचंद की लड़की संयोगिता से प्रेम हो गया और दोनों की शादी भी हो गई,

अब किस मुंह से हिंदू धर्म के लोग सगोत्र विवाह पर प्रशन करतें हैं ??? तुम सत्य धर्म को बदनाम करने के लिए और किताना गिरोगो ???
दुकान चलाने केलिए अफ़वाह फैलाने में शर्म आनी चाहिए मीडिया को ,

हरियाणा में चचेरा भाई बहन शादी के बंदध में बंधे
https://khabar.ndtv.com/n...suicide-2017576

प्रभु देवा ने अपनी सगी भांजी से शादी की
https://www.bollywoodtadk...r-niece-1279887


.... जय माता जी जय पिता जी ....
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संसार में आज से नही आदिमानव समय से हम किसी भी क्षेत्र में अच्छे को पाजिटिव और बुरे को नेगटीव के विचार की परंपरा चली आ रही थी फिर आधुनिक युग में हम *चिकित्सक क्षेत्र (मेडिकल क्षेत्र )* में हमने पाजिटिव को मौत सूचक और निगेटीव को जीवन का सूचक मान लिया यह आधुनिक युग तो ज्ञानी और वैज्ञानिक एवं बुद्धिजीवी का युग है फिर ऐसी बड़ी गलती की जीवन किसे कहा जाता और मौत क्या होती हैं। जो जिसका सूचक उसी का स्थान होना चाहिए।***पाजिटिव*** हमेशा जीवन-चक्र को आगे बढ़ाता है तो ***निगेटीव*** मौत के चक्र में ले जाता है। तो फिर *मेडिकल क्षेत्र यानि चिकित्सा क्षेत्र* में यह *पाजिटिव* मतलब वह बीमारी के चपेट में और *निगेटीव* मतलब आप स्वस्थ्य हैं, इस पर हमे विचार करना होगा

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कुदरत ने जान को सिखाया नजा सीख भी ले यह धर्म-कर्म -सत्य-सच के विश्वास की लड़ाई है सीख ले तब जान ने कुदरत से कहा मैं सीख लूंगा। लेकिन पहले-पहल मैंने लड़ाई के साथ युद्ध में एक *किस्मत* पा गया वह है मेरी *संस्कृति* - * सभ्यता* है, जो मेरे आसमान यानि माता-पिता वर्तमान सत्य की है। जो मेरे लिए लड़ाई में एक तरफ *किस्मत* तो कही लड़ाई-युद्ध के साथ बहुत *बदकिस्मत* है फिर भी मैं मरते मर जाऊँगा पर कभी नही छोड़ूंगा,तो कुदरत ने जान से कहा मैंने कब कहा तू छोड़ दें अपनी *संस्कृति* और *सभ्यता* को लेकर यहाँ के सारे-तौर तरीके से वाकिफ हो जा और यहाँ जो *शुरू* में हुआ और *वर्तमान* में जब तू होगा। तो यह तेरी *लड़ाई* के अहम की होगी। संघर्ष का साथ रहेगा और तू *सत्य* पाया जायेगा तो तेरे काम को कोई भी हरा न पायेगा इस *धरती* पर तू खुद अपनी लड़ाई से राह पाता जायेगा। और तेरे धुन पर महकेगा आसमान के वातावरण के साथ मेरे समय का वर्तमान का *जीवन एक संघर्ष है-परशनल* यह विश्वास का तरंग फैलेगा यही से जिन्दगी का सच निखरेगा सत्य को प्रकाशित करेगा जिससे जमीन के विश्वास से रंग निखरेगा।