बीजेपी घेर रही अखिलेश को, तो क्या घिर गए अखिलेश, देखिये इस रिपोर्ट में

बीजेपी घेर रही अखिलेश को, तो क्या घिर गए अखिलेश, देखिये इस रिपोर्ट में #UPElections #Politics

           

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इस सीट पर हार जीत के फैसले से व्यक्तिगत रूप से किसी को कोई हानि और लाभ होने वाला नहीं है राजनीतिक रूप से हानि लाभ हो सकता है यदि अखिलेश यादव हारते हैं तो सपा का सत्यानाश हो जाता है यदि प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल हारते हैं तो भाजपा का इसमें कोई भी नुकसान नहीं होता क्योंकि यह सपा की सुरक्षित सीट है जहां पर सपा का परिवार इस पर हमेशा से अरुण रहा है यदि प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल अखिलेश यादव को हरा करके नहीं लेकिन उनके जीत के मार्जन को मिनिमाइज कर देते हैं तब भी प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल की जीत होगी और भाजपा की जीत होगी यस यस पी सिंह बघेल यह हार भी जाते हैं तब भी उनके ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ता यदि अखिलेश यादव हार जाते हैं तो उनके राजनीतिक कैरियर का अंत समझ लो तो यह सीट किसके लिए लाभ हानि का प्रश्न है यह आप लोग खुद समझ सकते हैं


मोदी युग अंत की ओर :-

संसद में राष्ट्रपति का अभिभाषण विजनरी होता है। राष्ट्रपति अपनी सरकार के पिछले संसद सत्र से लेकर वर्तमान संसद सत्र तक सरकार के किए कामों का लेखा जोखा देश के सामने प्रस्तुत करते है तो अगले सत्र और भविष्य में सरकार की योजनाओं को प्रस्तुत करता है।

फिर राष्ट्रपति के अभिभाषण पर दोनों सदनों में चर्चा होती है , संसद सदस्य अपने सुझाव या आलोचना करते हैं और अंत में सदन का नेता ,देश के प्रधानमंत्री दोनों सदनों में उस चर्चा का जवाब देते हैं।

प्रधानमंत्री के जवाब में सभी सांसदों के लगाए गये आरोप प्रत्यारोप और सुझावों पर प्रधानमंत्री अपनी सरकार का विजनरी पक्ष रखते हैं , कुछ सांसदों का सुझाव स्वीकार करते हैं तो कुछ सुझावों को तर्क और तथ्य के आधार पर नकारते हैं फिर वोट आफ थैंक्स होता है और राष्ट्रपति के अभिभाषण पर वोटिंग होती है। जहाँ वोट आफ थैंक्स का सदनों से पास होना सरकार के बहुमत प्राप्त होने को प्रमाणित माना जाता है।

यह एक स्वस्थ लोकतंत्र की स॔सदीय प्रक्रिया है।

मगर 7 फरवरी को देश के प्रधानमंत्री , लोकसभा में अपनी ही पार्टी , अपने ही संगठन , अपने ही ट्रोल आर्मी द्वारा घोषित एक "पप्पू" राहुल गाँधी के संसद में दिए भाषण के कारण ट्रोलर की तरह 2 घंटे 20 मिनट राहुल गाँधी को ट्रोल करते रहे वह एक प्रधानमंत्री की हताशा को दिखाता है।

संसद के एक सांसद मात्र राहुल गाँधी के संसद में दिए ऐतिहासिक भाषण की काट कर करने के लिए रातदिन "गरुण पुराण" पढ़ते रहे और संसद में उसी को लेकर राहुल के राष्ट्रवाद पर आरोप देते रहे।

दरअसल मोदी राष्ट्र को सरकार की योजना नहीः बल्कि पंजाब , मणिपुर , गोवा और उत्तराखंड में कांग्रेस से जूझ रही अपनी पार्टी का संसद से प्रचार कर रहे थे।

मोदी निश्चित रूप से बोलने में एक बेहतरीन कलाकार हैं , तथ्य और तर्क लाख झूठें हों वह इन झूठ के सहारे ही देश की जनता का मनमस्तिष्क अपने एक भाषण से ही परिवर्तित करने की क्षमता रखते हैं और पिछले 9 साल से ऐसा लगातार किया भी है।कल संसद में उनके 2 घंटे 20 मिनट उनमें मैं केवल हताशा देखता रहा , ना ही भाषण में वह तेज , ना वह पुट , ना आत्मविश्वास।

बस ट्रोलर की तरह राहुल गाँधी और कांग्रेस पर ऊल जुलूल आरोप , लगातार , और जो कांग्रेस इस समय जर्जर स्थीति में 54 सीट पर लोकसभा में सिमटी है उसे वह 44 सीट पर जीता हुआ लगातार बताते रहे।

निश्चित रूप से एक तानाशाह के अपनी विपरीत स्थीति में किया जाने जैसा आचरण ही मोदी का संसद में दिया भाषण था।

5 राज्यों का चुनाव , उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों के प्रचार से प्रधानमंत्री की दूरी उनके काल के पतन का संकेत है।

तब कि जब प्रधानमंत्री 24×7×12×365 अपनी पार्टी के चुनावी मशीन से अधिक कुछ नहीं , प्रधानमंत्री तो बिल्कुल नहीं।

यह भाषण मोदी युग की समाप्ती और राहुल गाँधी युग के शुरुआत की घोषणा करेगा। और भाषण में दक्षता ही यदि बेहतर नेता होने का मापदंड है तो इस संसद सत्र में राहुल गाँधी जीत चुके हैं और मोदी हार चुके हैं।

राहुल के भाषण की विश्व भर में प्रशंसा हो रही है , विरोधी भी प्रशंसा कर रहे हैं और मोदी के कल के भाषण की हर ओर आलोचना हो रही है।

यही कारण है कि राहुल गाँधी के लुधियाना (पंजाब) में की गयी वर्चुअल रैली को 11 लाख से अधिक लोगों ने लाईव देखकर विश्व की किसी भी लाईव रैली को देखने का रिकार्ड बना डाला।

मोदी युग के अंत का प्रतीक है , बस थोड़ा प्रतिक्षा करिए क्योंकि चुनावी मशीन की इक्सपायरी डेट करीब आ चुकी है।




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