अमेरिका से आगे होगा भारत, Gautam Adani ने कहा- इतने दिनों में मिट जाएगी गरीबी

2050 तक 30 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी होगा भारत

           

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मोदी जी भी 15 लाख रु हर भारतीयों को दे चुके हैं, और लगभग 8 साल शासन के बाद सम्पूर्ण देश मे नौकरियों के अम्बार है कोई काम करने वाला नहीं मिल रहा है,
ऐसे हालात में मेरा मानना है कि अगले 5 साल में ही भारत 50 ट्रिलियन economy का देश हो जाएगा,
अडानी जी का आंकलन बहुत late है,
किसानों की आय दोगुनी हो ही चुका है, सबको पक्का घर मिल ही चुका है, हर घर संडक बिजली पानी से जुड़ ही चुका है, हर 10 व्यक्ति पर एक शिछक और हर 5 व्यक्ति पर डॉक्टर उपलब्ध हो चुका है,
सारे विकसित देशों का मुख्यालय भारत में खुल ही चुका है,
अमेरिका रूस चीन जर्मनी जापान फ्रांस ब्रिटेन भिक मांगने के लिए देश में लाइन लगा कर खड़ा ही है,
तो फिर इतना समय क्यों लगेगा,


"मेरा देश आजादी होगा लेकिन यह आजादी गरीब-दलितों की नहीं होगी"
उपरोक्त बातें अपने जीवन के हर क्षण को शोषित वर्गों के लिए समर्पित करने वाले एवं संविधान-निर्माता डॉ० भीमराव अम्बेडकर ने अपने सहयोगियों से कही थी, जो कि आज वास्तव में स्पष्ट दिखाई दे रही है | भारत जैसे प्रजातांत्रिक व्यवस्था वाले देश में जात-धर्म, रंग-संप्रदाय के नाम पर हिंसा, शोषण शोभा नहीं देता है | बल्कि हमारी आजादी पर प्रशन चिह्न लगता है कि ये कैसी आजादी है जहां न उचित भोजन मिलता है, न कपड़ा, न आवास की व्यवस्था, न स्वास्थ्य ? अगर कोई न्याय मांगते है तो उसको गालियां एवं मार मिलती है | जिसका सबसे ज्यादा प्रभाव भारत के मूलनिवासी एवं महान् संस्कृति को संजोये रखने वाले आदिवासी भाई-बहनों पर दिखाई देता है | ये अक्सर अपने भेजन की पूर्ति के लिए पलायन करते हैं बिहार, गुजरात, महाराष्ट्र, दिल्ली जैसे अनेकों राज्य में | हद तब होती है जबकि पुरुषों के अलावे महिलायें और खास तौर युवतियों भी घर छोड़कर पलायन करती है जहां पर वे समाज के दरिंदों द्वारा दुष्कर्म का शिकार होती हैं | हमारे देश के अन्दर अन्य कोई भी समाज की महिलायें पलायन नहीं करते हैं इनको छोड़कर, आखिर क्यों ? आदिवासी समुदाय सबसे मेहनती होते हैं, वे मेहनत के बदौलत कठिन से कठिन कार्य बाहर में करते हैं फिर भी वे मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाते हैं और इसकी मुख्य वजह है उचित मजदूरी का न मिलना | अगर कोई उचित मजदूरी मांगता भी है तो उन्हें गालियां एवं अक्सर मालिकों को मार खानी पड़ती है जिसे वे चुप रहकर सहन करते हैं | लेकिन सरकार सबकुछ जानने के बाद भी कुछ नहीं करती है बल्कि वह भी विकास के नाम पर शोषण कर रही है | कहीं अभयारण्य के नाम पर हाथी छोड़ा जा रही है जो कि घर छोड़ भागने पर विवश कर रहा है, तो कहीं बांध एवं बड़ी कम्पनी की स्थापना के नाम पर इनके जीने के मूल स्रोत को छीना जा रहा है | ये सब देखने से ज्ञात है कि आजादी के बाद समस्याएं घटने के बजाए बढ़ ही रही हैं | अगर हम इस पर गोलबंद होकर लड़ाई नहीं लड़ते हैं तो वह दिन दूर नहीं है जब यह समाज लुप्त हो जाएगा |




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