अलवर में मंदिरों पर बुलडोज़र चलने के बाद विरोध तेज़!

अलवर में मंदिरों पर बुलडोज़र चलने के बाद विरोध तेज़! राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा ने किया दावा- अलवर में मंदिरों पर बुलडोज़र चलाए जाने की शुरुआत बीजेपी के शाशन में ही हो गयी थी #Rajasthan #Alwar #ATVideo | Ashutosh Chaturvedi, Sharat Kumar

           

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बात 1955 की है! सउदी अरब के बादशाह "शाह-सऊदी" प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू के निमंत्रण पर भारत आए थे। वे 4 दिसम्बर 1955 को दिल्ली पहुँचे, जहाँ उनका पूरे शाही अन्दाज़ में स्वागत किया गया! शाह-सऊदी दिल्ली के बाद, वाराणसी भी गए!

सरकार ने दिल्ली से वाराणसी जाने के लिए, "शाह-सऊदी" के लिए एक विशेष ट्रेन में, विशेष कोच की व्यवस्था की! शाह सऊदी जितने दिन वाराणसी में रहे उतने दिनों तक बनारस की सभी सरकारी इमारतों पर "कलमा तैय्यबा" लिखे हुए झंडे लगाए गए थे!

वाराणसी में जिन-जिन रास्तों-सडकों से "शाह-सऊदी " को गुजरना था, उन सभी रास्तों-सड़कों में पड़ने वाले मंदिरों और मूर्तियों को पर्दों से ढक दिया गया था!

इस्लाम की तारीफ़ में, और हिन्दुओं का मजाक उड़ाते हुए शायर "नज़ीर बनारसी" ने एक शेर कहा था:-

अदना सा ग़ुलाम उनका,
गुज़रा था बनारस से,
मुँह अपना छुपाते थे,
ये काशी के सनम-खाने!

अब स्वंय ही सोचिये कि कोंग्रेस हिन्दुओ से कितनी नफरत करती है !!




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