हम संविधान के रक्षक हैं, हम झुकेंगे या डरेंगे नहीं: कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला

हम राहुल गांधी के नेतृत्व में प्रवर्तन निदेशालय (ED) कार्यालय तक शांतिपूर्ण विरोध मार्च निकालेंगे। हम संविधान के रक्षक हैं, हम झुकेंगे या डरेंगे नहीं: कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला #Congress #politics #Delhi (Neha Batham)

           

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क्या सिर्फ गुरु जाम्भोजी के अनुयायी बिश्नोईयों का ही फर्ज हैं कि पेड़ बचाएं

️ दिनेश सिंह बिश्नोई
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ये पर्यावरण के पिल्ले सचमुच बहुत भौंकते हैं
सोलर कंपनियों के व्यक्तियों के द्वारा छबीली मुस्कान में कहे गए यह शब्द भले ही हमारी कौम के लिये तीखे हो लेक़िन बिश्नोई समाज पेड़ो के लिए पीछे हटने वाला नहीं है।
भले ही माँ अमृता देवी का इतिहास दोहराना पड़ जाए भले ही सिर कट जाए, लेकिन प्रकृति के साथ कुठाराघात करने की इजाजत नही देंगे! दुःख तब होता है जब यह सिर्फ़ बिश्नोई समाज के लिए नहीं मानव जाति के लिए गलत करने के वाबजूद भी लोग चुप्पी साधे बैठे हैं और यह शायद तब बोलेंगे जब आख़िरी पेड़ कट जाएगा या फिर नदी के पानी में जहर घुल जाएगा तब एहसास होगा कि पैसे नहीं खा सकते!
विश्नोई समाज विकास के अंधविरोधी नहीं हैं बल्कि अंधे विकास का विरोध करती हैं। देश के निर्माण में बढ़कर चढ़कर भाग लेने को आतुर मेरी कौम प्रकृति से समझौता कदापि नहीं कर सकेगी। मैं हैरान हूँ कि क्योटो, कोपेनहेगन, पेरिस, रियो डी जेनेरियो जैसे स्थानों पर पृथ्वी बचाने के सम्मेलन आयोजित किये जाते हैं लेकिन धरती को बचाने के लिए कोई कुछ नहीं करता! यदि इसी प्रकार से चले आये तो भविष्य में भुख को शांत करने के लिए कई पृथ्वियों की जरूरत पड़ सकती हैं।

जिसने सूरज की शुआओं को गिरफ्तार किया
ज़िंदगी की रबे तारीख़ सहर कर न सकें (इक़बाल)

सृष्टि के विनाश को रोकने के लिए शायरों को शब्दशः समझना होगा। हमें मानवता के नाते पेड़ों की कटाई रोकनी होगी और प्रकृति को बचाने के लिए प्रशासन से लेकर सरकार तक सबसे लड़ना होगा।
खलील जिब्रान कहते है कि याद रखों की धरती तुम्हारें पैरों को स्पर्श करना चाहती हैं और हवा तुम्हारें बालों को सहलाना चाहती हैं।
फिर उसी धरती जिनको हम माँ कहते हैं उनके साथ खिलवाड़ करते हैं तो शर्म व इंसानियत हमारी बची ही कहाँ है। जब सोचता हूँ कि क्या यह सिर्फ गुरु जाम्भोजी के अनुयायी बिश्नोईयों का ही फर्ज हैं कि पेड़ बचाएं! तो धरती बचाने के सम्मेलन महज मिथक लगते हैं।
दीवारों पर सरकार लिखवाती हैं कि खिले हुवे फूल औऱ कुछ नहीं बल्कि धरती की मुस्कराहट हैं, परन्तु विडंबना यह है कि हमारी धरती की यह मुस्कुराहट अब मलिन पड़ने लग गई हैं।
गाँधीजी के इस देश में हम देवताओं की इस भूमि पर अपने स्वार्थों के ख़ातिर मौन स्वीकृति देते जा रहे हैं।


समय आ गया है प्रकृति की ओर लौट चलें, पर्यावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करें और प्रत्येक मनुष्य को जम्भेश्वर भगवान के नियमों को मानकर पेड़ों की रक्षा में ही अपनी रक्षा समझकर मानव जाति को कंधे से कंधा मिलाकर पर्यावरण संरक्षण करना चाहिए।

मैं मानता हूँ कि मैं संवेदना के क्षरण के उस दौर में हूँ जहाँ मानव, मानव को ही नहीं समझ रहा है; ऐसे में पेड़-पौधों और पशु पक्षियों की संवेदनाओं को मानव द्वारा महसूस करना अति आशावादिता होगी! फिर भी उम्मीद है कि मानव प्रकृति को सहेज लें, लालची मन को त्यागें।