1ºहम तन्खइए हैं.......
चीन तनख्वाह दे दे कल उसकी सेना में भर्ती हो अपने देश पर ही अटैक कर देंगे.....
मेरी बात कुछ ज्यादा लगी क्या.....?
इतिहास उठा कर देख लीजिये.....
हर विदेशी हमलावर को सप्लाई, सुचना तंत्र, और लड़ाके सब यहीं मिले..... इसी मिट्टी से..... हम #नमक_की_गुलाम_नश्ल हैं.... मिट्टी से लगाव हमारी न आदत में न खून में...
होता तो महाराणा क्या तनख्वाह देने को भामाशाह के क़र्ज़दार होते....
होता तो हेमचंद विक्रमादित्य को बेहोश रण में अकेला छोड़ उनकी सेना चली जाती.....
होता तो पुरबिया शिलादी राणा सांगा को छोड़ बाबर के साथ थोड़े लड़ता....
महाराणा की सेना से कौन लड़ा था..... और क्यों?
राजे शिवाजी के खिलाफ़ अभियान में कौन थे.... क्यों थे?
1857 में हिंदुस्तानी को हिंदुस्तानी मार रहा था..... तनख्वाह के सदके....
1942 में आज़ाद हिन्द फ़ौज से कौन लड़ रहा था...... अंग्रेज़...... नहीं..... तनख्वाह वाले हिन्दुतानी.....
ओ नमक के गुलामों....... मिट्टी का क़र्ज़ चुकाने की भी सोचो कभी........ या बस गीत ही गवेंगे मिट्टी में मिल जावां.......
तनख्वाह के गुलामों कभी तो देश को पहले भी रख लो इससे........!