यूपी के सीतपुर में बकरीद के दिन एक परिवार ने इस खास त्योहार पर बेहद अनोखे अंदाज से कुर्बानी कर मिसाल पेश की. मोहल्ला ग्वालमंडी के रहने वाले मेराज अहमद ने बकरीद के मौके पर बकरे की कुर्बानी ना देकर बकरे की फोटो लगे केक को काटकर कुर्बानी दी. इस मौके पर मेराज के साथ जिला पशु सेवा समिति के लोग भी मौजूद

           

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अगर सोशल मीडिया से हटकर आप जमीनी हकीकत पर गौर करेंगे तो बकरीद ही सिर्फ एक ऐसा त्योहार है जिसका इंतजार मुसलमानों से ज्यादा हिंदुओं को रहता है।

अमीरों के चोचलों और राजनीतिक दलों के एजेंडे से हटकर आप सुदूर गांवों में जाइए वहां लगभग हर गरीब के घर में एक दो बकरियां और एक दो बकरे मिलेंगे। आप उनसे बकरीद के चार महीने पहले बकरे खरीदने की बात करिए वो आपको तुरंत न बोल देंगे कि अभी हम बकरा नहीं बेचेंगे इन्हें हम बकरीद में बेचेंगे ताकि हमे इसके अच्छे दाम मिलें।

एक बकरीद से उनको दूसरी बकरीद का इंतजार हो जाता है। उनका सपना होता है कि बकरा बेचकर फलां फलां काम करेंगे। लड़की के लिए थोड़ा सा जेवर ले लेंगे जिससे शादी के टाइम खरीदना न पड़े। इस तरह के तमाम काम वो गरीब लोग बकरीद में बिकने वाले बकरे के जिम्मे छोड़ रखते हैं।

बकरीद एकमात्र ऐसा त्योहार है जहां पैसे का बहाव अमीरों से गरीबों की तरफ होता है। वरना दुनिया में जितने त्योहार हैं सब में उद्योग पतियों का पेट बड़ा होता है।


दोस्तों
मैं बहुत देर से आप लोगों के कमेंट पढ़ रहा हूं यह मेराज भाई इन्हें मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूं सीतापुर जिले के रहने वाले हैं और पशुओं के कल्याण से संबंधित एक एनजीओ जो कि पशु सेवा समिति के नाम से है, के उपाध्यक्ष हैं एवं सीतापुर की एक और सामाजिक पहल संस्था सीतापुर जोकि सामाजिक कार्य कर रही है उसके संरक्षक भी हैं यह अपना अपना विचार है चूंकि यह पशु सेवा समिति के उपाध्यक्ष हैं अतः इनका काम पशुओं को संरक्षण देना और बहुत से पशुओं को किसी भी तरह की चोट से घायल पशुओं की सेवा करते रहते हैं। बहुत ही नेक दिल इंसान है।


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Mahakaal Ki Diwani acha bahen to ye padho

निर्दोष जानवरों के बलिदान का जश्न मनाने और उसका आनंद लेने के लिए भी जबरदस्त आस्था की आवश्यकता होती है।

हिंसा को जायज ठहराने वाला धर्म कैसे हो सकता है...??

एक निर्दोष जानवर को मारने और प्रसादी बनकर स्वस्थ होने के लिए बलिदान के नाम पर ऐसी धार्मिकता कैसे हो सकती है?

रहीम परमार को

// किसी त्योहार या अवसर पर पूरे भारत में बलिदान का चक्र चल रहा है उदा।

कलकत्ता में कालीमाता के मंदिर में साल के हर दिन होता है बलिदान!

महाराष्ट्र के तुलजापुर भवानी मंदिर में पालते हैं बकरियां!

कर्नाटक में गायों की बलि दी जाती है।

राजस्थान में पाड़ा बाली नवरात्रि के दौरान जारी है।

असम में कामखिया माताजी के मंदिर में भी हर दिन हो रही है कुर्बानी!!!

ईद (बकरी ईद) के मौके पर मुसलमानों में कुर्बानी (बलिदान) की भी प्रथा है! जिसमें बकरी, पाड़ा, भैंस, ऊंट, भेड़ जैसे जानवरों की बलि दी जाती है। (यहाँ धर्म में ईश्वर को भेंट स्वरूप अपनी प्रिय वस्तु चढ़ाने की बात है, लेकिन लोग बाजार से गूंगा पशु खरीदकर और उनकी बलि देकर धर्म का पालन करना ही संतोष समझते हैं)

महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में खापोली गांव के पास माताजी का मंदिर है वहां हर साल मेला लगता है।

मैं अपने गुजरात के बारे में भूल गया था मेलोडी माताजी के भक्त चैत्र के महीने में बकरियों और बकरियों को मंत्र पूरा करने के लिए बलिदान करते हैं !!!! //