महंगाई के मुद्दे पर विपक्ष का गांधी प्रतिमा के पास प्रदर्शन

महंगाई के मुद्दे पर विपक्ष का गांधी प्रतिमा के पास प्रदर्शन, देखिए रिपोर्ट #ReporterDiary (#SupriyaBhardwaj)

           

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2014 तक सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम भारतीय अर्थतंत्र में 27% तक योगदान कर रहे थे। डिविडेंड के ज़रिए सरकार के पास कैश फ्लो बनी हुई थी। इसके अलावा पासपोर्ट, परीक्षा, लाइसेस, प्रमाण पत्र समेत तमाम सेवाएं थीं जिनसे राजस्व प्राप्तियां होती थीं। अब मुनाफा कमाने वाले अधिकांश पीएसयू निजी क्षेत्र के कमाऊ पूत बन गए हैं। तेल, गैस की बढ़ी हुई क़ीमतों का लाभ एस्सार, अडानी और अंबानी के पास जा रहा है। रेलटेल और बीएसएनएल के नेटवर्क पर टाटा और जियो नोट छाप रही हैं। पासपोर्ट सेवा टीसीआईएल, आधार और एनआरपी से विप्रो को मुनाफा है। एनटीए की नीट, नेट जैसी परीक्षाएं टीसीएल के पास हैं। ऐसी ही तमाम सेवाएं हैं जिनके ज़रिए थर्ड पार्टी वेंडर नोट छाप रहे हैं। कोयला, बिजली, तेल, गैस, पोर्ट, एयरपोर्ट, प्लेन, रेल, टौल, समेत कमाई या राजस्व प्राप्ति वाला कोई विभाग सरकार के पास बचा नहीं। सरकारी सेवाओं को ख़त्म करने और निजी क्षेत्र के लिए आपके प्यार के चलते सरकार को मजबूरन सब बेचना पड़ा। नुक़सान तीहरा हुआ। एक तो रोज़गार घटा, बाज़ार से कैश फ्लो गया और सरकार के पास हर साल आने वाली कमाई बंद हो गई। जो आया एक बार बेचकर आ गया, और जो मिला वो सब इस बीच खा लिया गया। ये सब आपकी वजह से हुआ है, इसमें सरकार का कोई दोष नहीं। न आप शोर मचाते, न कुछ बिकता। आप जलन में कह सकते हैं कि, "सरकार ठाठ तो वही हैं। न कोई मंत्रालय कम हुआ, न मंत्री हटा, न स्टाफ और न सुविधाएं घटीं। सरकारी कार प्लेन, जेट, बंगले सब साल दर साल बड़े हो रहे हैं।"
तो क्या पीएम टाट पहनने लगें और मंत्री पटे वाले कच्छे में घूमें? सरकार चलाने और सरकार में बैठे लोगों के ख़र्च कौन उठाएगा? ज़ाहिर है जिन्होंने सरकार चुनी है। तो बाबू ज़रा सी जीएसटी बढ़ने, नया टैक्स लगने या टैक्स बढ़ने पर आपकी नाराज़गी ग़लत है। सरकार आपके वोट से चुनी गई है और उसके हर फैसले के लिए आप ज़िम्मेदार हैं। सरकार को कोसना बंद करें और चुपचाप अपने हिस्से में आया टैक्स चुकाएं। सरकार बनाए रखने और उसके ख़र्च पूरा करने के लिए आपका योगदान ज़रूरी है। देशहित में एक रोटी कम खाएं। नमक, तेल, दही, चावल, दाल का इस्तेमाल थोड़ा कम करें। फल खाना बिल्कुल भी ज़रूरी नहीं है। सस्ती, मौसमी सब्ज़ी या फिर घर के बाहर उगने वाली दूब, चौलाई, मकोह के पत्ते आलू संग पकाकर खाएं। किसी ने नहीं कहा है कि महंगाई में दूध, खोया, पनीर ठूंसें। रेस्टोरेंट में फिज़ूलख़र्ची तो क़तई ग़ैर-ज़रूरी है। वैसे भी पूरी दुनिया में महंगाई है। डाॅलर महंगा हो तो हो, आप बिल्कुल न ख़रीदें। हल्का सा बुख़ार आते ही दवा फांकना और बीमारी के बहाने अस्पताल भागना क़तई ग़ैर-ज़िम्मेदाराना हरकत हैं। एक शर्ट तीन चार साल चलाएं और जींस, ट्राउज़र तो फटने के बाद और अच्छी लगती हैं। जूता घिसकर भी सात-आठ साल पहना जा सकता है। टूट जाए तो मोची के रोज़गार में सहायक बन सकता है। कुल मिलाकर मितव्ययता से रहें और महंगाई का रोना तुरंत बंद करें। सरकार के पास अब पैसे के पेड़ नहीं हैं। शुक्र मनाएं आप पर रहम खाकर अभी हगने-मूतने पर टैक्स नहीं लगा है। कफन का अब भी पहले की तरह चंदा करके जुगाड़ हो जाता है। सो चिल्ल...