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राष्ट्रपति राज्य पर बोझ
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राज्य कर्ज से चलने वाली संस्था नहीं है. लेकिन किसी भी राष्ट्रपति ने दिवालिया सरकारों को कर्ज लेने से नहीं रोका. इसलिये राष्ट्रपति राज्य पर बोझ है.
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देशद्रोही और न्याय के हत्यारे संविधान निर्माता ने
भारत को बरबाद करने के लिये
कानूनों का पालन करवाने वाली सरकारों को ही
कानून बनाने का अधिकार देकर
अदालतों को सरकारों के अधीन कर दिया
और सरकारों को मनमानी, लूटपाट और विध्वंस करने के लिये
और न्याय की हत्या करने के लिये छुट्टा छोड़ दिया
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बैंकिंग कार्य व्यापार का हिस्सा है और व्यापार करना राज्य का काम नहीं है. फिर भी केंद्र सरकार ने मनमानी करते हुये राष्ट्रीयकरण का राज्य विरोधी कानून बनाकर देश की सारी निजी बैंकों को लूट लिया और केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने प्रजा का अधिकांश व्यापार-पेशा हड़प लिया और फ्री का राशन आदि बांट बांट कर भारत को कमजोर, कर्जदार और दिवालिया बना दिया और करोड़ों पीड़ितों को न्याय के लिये बरसों तरसा तरसा कर न्याय की हत्या कर दी. और महंगाई को बढ़ा दिया.
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पढ़ाना और इलाज करना राज्य का काम नहीं होने से सरकारी पढाई और इलाज का स्तर घटिया ही रहेगा. और व्यापार करना राज्य का काम नहीं होने से सरकारी व्यापार देश को भयंकर घाटा देते ही रहेंगे.
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घाटा देने वाले कर्मचारियों को और सरकारी प्रोफेसरों, टीचरों और डॉक्टरों आदि को भारी-भरकम वेतन देने के लिये और आजीवन भारी-भरकम पेंशन देने के लिये और फ्री में राशन आदि बांटने के लिये व्यापार में घाटा खा खा कर दिवालिया चुकी सरकारें आंतरिक और विदेशों से विराट कर्ज ले रही है और हद से ज्यादा टैक्स बढ़ा बढ़ा कर और अवैध टोलटैक्स लगा लगा कर प्रजा के रुपयें लूट रही है और सड़कों आदि को निजी कंपनियों के पास गिरवी रख रही है और रक्षा आवश्यकताओं में कमी रख रही है और न्यायालयों और न्यायाधीशों की कमी रख रही है. फलस्वरूप भारत कमजोर, कर्जदार और दिवालिया हो गया और न्याय बरसों में मिल रहा है.
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बरसों में न्याय मिलना न्याय की हत्या है. बरसों में न्याय मिलने से जेलों में बंद लाखों विचाराधीन बंदी ऐसे भी है जिन्हें जल्द न्याय मिल जाता तो उनके सजा की अवधि उनके बंदी जीवन से कम होती. जुर्म की सजा से ज्यादा सजा देना भी न्याय की हत्या है.
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दूसरी तरफ, हद से ज्यादा बढ़े टैक्सों ने और अवैध टोलटैक्सों ने महंगाई को बढ़ा दिया.
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टोलटैक्स अवैध इसलिये है क्योंकि राज्य रोड़टैक्स ले रहा है.
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अदालतें सरकारों को न्याय की हत्या करने से और मनमानी करने से और लूटपाट करने से और दिवालिया सरकारों को कर्ज लेने से और फ्री में राशन आदि बांट बांट कर देश को बरबाद करने से रोक नहीं सकती. क्योंकि सरकारें कोई भी कानून बनाकर अदालत के किसी भी फैसले को पलट सकती है.
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कानून बनाना सरकारों का काम नहीं है. इसलिये सरकारों के बनाये कानून अनुचित है और अव्यावहारिक है. अनुचित और अव्यावहारिक कानून प्रजा और देश के लिये अहितकर है.
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लागू संविधान ने शासन चलाने के लिए प्रजा में से वोट द्वारा शासन चलाने वालों को तो चुन लिया लेकिन प्रजा में तो कानूनी ज्ञाता, न्यायविद्, शिक्षाविद्, चिकित्साविद्, अर्थशास्त्री और समाजशास्त्री आदि भी तो है लेकिन संविधान ने इनको संसद और विधानसभा के लिए आमंत्रित कर कानून बनाने का अधिकार नहीं दिया. इसलिये लागू संविधान अर्ध प्रजातान्त्रिक है.
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प्रजा में भेदभाव करना राज्य का काम नहीं है. और लागू संविधान का राज्य प्रजा में भेदभाव कर रहा है. इसलिये लागू संविधान गलत है.
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जल्द न्याय के लिये और कमजोर, कर्जदार और दिवालिया भारत को समृद्ध और शक्तिशाली बनने के लिए चाहिये भेदभाव रहित पूर्ण प्रजातान्त्रिक संविधान.