1º"वक्त बलवान तो गधा पहलवान,"
नीतीश कुमार :-
बिन मेरी इजाज़त लालू-पुत्रों को मंत्री बनाकर मेरी पेंशन में लालू गूर्गे द्वारा 4 लाख रुपए सेंध लगाने के एवज में लालू से मुझे हर्जाना बतौर 10% ब्याज सहित 8 लाख रुपए मिलने में तुमने जो रोड़ा लगाया है, उसके लिए लालू से हर्जाना दिलवा या मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर अपनी सांसद तथा मुख्यमंत्री पेंशन द्वारा मुझे 8.8 लाख रुपए भुगतान कर, जिससे मैं Junior Commissioned Officer status का कमरा बना सकूं, वर्ना भविष्य में MLA या सांसद चुनाव में जमानत जब्त के लिए तैयार रह।
देश भर में जहां भी जायेगा, जनता एक ही सवाल उठायेगी कि घोटालेबाज लालू गूर्गे ने जिस पूर्व सैनिक को एक कमरा नहीं बनाने दिया, उस लालू के पुत्रों में सिवाय लालू औलाद होने के ऐसी कौनसी खुबी थी जो उन्हें मंत्री बनाया। वैसे नीतीश, मुझसे 5 वर्ष बड़े होने के तुम्हारे में ऐसी कौनसी खुबी है जो देश के किसी भी क्षेत्र में चुनावी जंग में मुझसे जमानत बचा सकेगा।
देश के संसाधनों पर क्या घोटालेबाजों, रिश्वतखोरों तथा सत्तारूढ़ों का ही हक़ है, देशहित में जीवन न्यौछावर करने के लिए तैयार रहने वाले पूर्व सैनिक का नहीं जो घोटालेबाजों के गूर्गों द्वारा पेंशन में लूटपाट करने से बेघर होकर मारा-मारा फिरे। ध्यान रखना नीतीश कि जागृत जनता अब सैनिकों को लूटने वाले घोटालेबाजों तथा तुम्हारे जैसे मददगारों को सहन नहीं करेगी। इसलिए भलाई इसी में है कि मुझे मेरा हक मिलने में रोड़ा मत लगा, वर्ना मैं 66 वर्षीय तो किसी तरह गुजर-बसर कर लेता हूं, तुझे पानी देने वाला कोई न होने से सिवाय मेरे तुझे ठौर नहीं मिलेगा।
कोई व्यक्ति या संस्था एक बारगी देश भर में महत्वता प्राप्त करने से उसका असर वर्षों रहता है। 1977 के लोकसभा चुनाव में नये राजनीतिज्ञ स्वर्गीय रामबिलास पासवान की हाजीपुर से 4.6 लाख वोटों से विश्व-रिकॉर्ड विजय के अलावा इंदिरा गांधी सहित उत्तर प्रदेश की सभी 85 सीटों पर कांग्रेस की पराजय से पासवान को पूरे भारत में जो महत्व मिला, उससे उनका दलित राजनीति में जगजीवन राम से ज्यादा महत्व हो गया था। यद्यपि इंदिरा मरने के कारण 1984 मेंं रामबिलास पराजित होकर 1989 में 5.4 लाख मतों से विजयी हुए।
1989 में राजनीति के 2 विपरीत ध्रुवों (BJP तथा वाम मोर्चा) के बाहरी समर्थन से सत्तारूढ़ जनता दल के कारण देश की सत्ता पर बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभाव होने से पासवान, लालू तथा शरद यादव का देश भर में VP Singh, चन्द्रशेखर तथा देवीलाल से ज्यादा असर हो गया था। यद्यपि घोटाले के कारण लालू नेपथ्य में हो गया, लेकिन मुलायम-लालू की यादव लहर छाई रहने से शरद यादव पूर्णतः उभर नहीं सका। 1990 में विधानसभा चुनाव दौरान तत्कालीन हरियाणा मुख्यमंत्री देवीलाल ने लालू को करोड़ों रुपये दिये।
यद्यपि मायावती कई बार मुख्यमंत्री बनी, लेकिन दलित राजनीति में पासवान की प्रतिष्ठा 43 वर्ष बाद भी जस-की-तस बरकरार रही। यही वजह थी कि पासवान को चुनावी "मौसम-वैज्ञानिक" के अलावा बहुमत के लिए 1-2 सांसद की कमी होने से महत्व रहा।
1947 से 1989 तक केंद्र में पुर्ण बहुमत सरकारें होने से छोटे दलों का विशेष महत्व नहीं था। लेकिन 1989 से 2014 (25 साल) तक छुटपुट दलों का वर्चस्व बढ़ गया था, जिससे सत्ताधारी दल गौण हो गए, 2-4 सीटों वाले दल, सर पर सवार होकर मनमानी करते रहे।
2014 में स्पष्ट बहुमत सरकार के बावजूद 2019 के लोकसभा चुनावों में 22 दलों के महागठबंधन तथा उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन से हलचल पैदा हो गई, जिससे एक ओर छुटपुट दलों का महत्व बढ़ गया तो दूसरी तरफ BJP की अपने समर्थक दलों का सम्मान करने की आदत से NDA में घटक दलों का प्रभाव बढ़ा।