1ºप्रधानमंत्री पद मृगतृष्णा में जब से इन्होंने एनडीए को धोखा देकर लालू एंड संस की अंगुली पकडी है और इन्हें जो झुनझुना थमाया है, लगता है उस झुनझुने में २४x७ पीएम पीएम पीएम पीएम की आवाज इन्हें सुनाई देती है।
२०१४ से पहले १० साल ये एनडीए के साथ रहे, २०१३ में नरेंद्र मोदी जी के बीजेपी के पीएम उम्मीदवार की घोषणा होते हुए ही नरेंद्र मोदी जी से जलन के कारण एनडीए से अलग हो गए और लालू यादव की पार्टी की गोदी में लेट गए, २०१७ में लालू पुत्र पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने के कारण और उन पर ना जाने कैसे कैसे आरोप लगा कर उन्हें छोड इन्होंने फिर एनडीए का दामन थाम लिया और २०१७ से २०२२ तक पूरे पांच साल ये एनडीए के साथ रहे और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के गुणगान गाते नहीं थकते थे और एक सभा में तो यहां तक कह दिया कि देश में प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी जी के अलावा कोई विकल्प ही नहीं है। २०२२ में इन्होंने फिर गुलाटी मारी और पुनः लालू एंड संस कंपनी के सहभागी बन गये जिन्हें २०१७ में भ्रष्टाचारी बता कर छोडा था।
खैर राजनीति में थूक कर चाटना कोई नई बात नहीं है। लेकिन कोई बार बार इसी प्रक्रिया को दोहराए तो उसे क्या कहा जाए ?
कल से ये श्री श्री ना जाने किस किस की चोखट पर गुलाटियां मार मत्था टेक दंडवत करते हुए धूल फांक रहे हैं क्या एक ने भी इनसे पूछा कि भैया २०१३-१४ में जब बीजेपी छोड़ी किस से पूछा? और लालू से हाथ मिलाया किस से पूछा?२०१७ में पुनः लालू पार्टी को धोखा देकर बीजेपी के सहयोगी बन गए तब किस से पूछा ?, और अब २०२२ में पुनः लालू पार्टी के सहयोगी बन गये तो ये सब पलटियां/गुलाटियां किस लालच में और किससे पूछ कर मारी, तब किस से पूछा?
विपक्ष की एकजुटता से इनका कोई सरोकार नहीं है ये सिर्फ अपनी पीएम उम्मीदवारी की संभावनाओं को टटोलने निकले हैं।