1ºआज मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक का कार्यकाल समाप्त हो रहा है,जाट हैं इसलिए जनहित के मुद्दा पर बेखौफ होकर सरकार के खिलाफ बोलते रहे क्योंकि यकीन था कि उनकी कौम सत्ता की चापलूसी छोड़कर जनहित के मुद्दों सरकार के खिलाफ जाने का भी साहस रखती है,अगर कौम साथ है तो फिर काहे का डर,कौम के दबाव ही सरकार कारवाई करने से हिचकती रही।किसान यूं तो सभी जातियां हैं लेकिन किसान आंदोलन में सरकार से नाराजगी को पोलिंग बूथ तक केवल जाट किसान ही लेकर गए थे इसकी धमक ने सत्ता को कौम के आगे घुटने टेकने को मजबूर कर दिया। इसलिए जाटों की नाराजगी को साधने के लिए उप राष्ट्रपति से लेकर उत्तर भारत के तीन बड़े राज्यों यू पी,राजस्थान और हरियाणा के प्रदेश अध्यक्ष भी जाट बनाए गए।जनाब सरकार उसी कौम की सुनती है जिसकी नाराजगी से उसका वोट भी पोलिंग बूथ पर खिलाफ जाने का डर होता है।उन कौमों की नाराजगी की परवाह नहीं करती जो सत्ता के खिलाफ आंदोलन तो करती है लेकिन मंच से वक्ताओं को सरकार के खिलाफ कुछ न बोलने के निर्देश भी दिए जाते हैं।जाटों के अलावा कितनी किसान जातियां हैं जो किसानों की नाराजगी को पोलिंग बूथ तक लेकर गई थी।असल में स्वामी भक्तो की कोई कद्र नहीं करता,यूं तो इस राज में भी सड़को पर आंदोलन खूब होते रहते हैं लेकिन वोट के मामले में कुछ भी हो जाए पतनाला वहीं गिरेगा की सोच हर आंदोलन की धार कुंद करती रहती है,इसलिए इस राज में असफल आंदोलनों की भी लंबी कतार है।जनाब खुफिया विभाग के जरिए सरकार हर कौम के आंदोलन की सच्चाई से वाकिफ होती है वो जानती है ये लोग चाहे जितना आंदोलन कर लें इनका वोट कहीं नहीं जायेगा।केवल जाटों ने किसान आंदोलन में इस मिथक को तोड़ने का काम किया था अगर सरकार से नाराजगी थी तो वोट भी खिलाफ जरूर गया था,वो तो केवल यू पी का चुनाव था लेकिन अगर उत्तर भारत में यू पी से लेकर दिल्ली ,हरियाणा,पंजाब और राजस्थान की जाट बेल्ट में भी किसान आंदोलन की नाराजगी के कारण जाटों में सत्ता के खिलाफ यही रुझान पोलिंग बूथ तक चल गया तो लोकसभा चुनाव में भाजपा को बहुत भारी पड़ जायेगा इसलिए झोली भरकर जाटों को सत्ता की रेवड़ियां बांटी गई हैं,लेकिन जाट हैं कि मानते नहीं फिर भी खिलाफत के मोर्चे पर डटे हुए हैं कौम का यही जज्बा सत्ता को झुकने पर मजबूर करता है सभी कौम को इससे सबक लेना चाहिए।