हिमाचल चुनाव से पहले बागियों पर BJP की सख्ती, 4 पूर्व विधायकों को किया सस्पेंड

हिमाचल चुनाव से पहले बागियों पर BJP की सख्ती, 4 पूर्व विधायकों को किया सस्पेंड (Lalit Sharma, Manjeet Sehgal)

           

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कुछ साल पहले की बात है, जब न्यूज चैनल देखा करते थे। किसी डिबेट में असदुद्दीन ओवैसी और ग़रीब नवाज़ फाउंडेशन के मौलाना थे। किसी बात पर मौलाना ओवैसी को कड़े शब्दों में फटकार लगाने लगे। उस दौरान ओवैसी मंद मंद मुस्कुराते रहा। मौलाना की डांट ख़त्म होने के बाद ओवैसी उठा और डिबेट छोड़ कर चला गया।

वह मौलाना न ही इस्लामिक जगत के खलीफा थे, न ही शाही इमाम। अगर बात शिक्षा, ताक़त की हो तो निःसंदेह ओवैसी का क़द उस मौलाना से कहीं बड़ा है। इसके बावजूद ओवैसी ने न तो बीच में कहीं टोका और न ही बीच में शो छोड़ा। मौलाना को जबतक तसल्ली न मिली तब तक डांटते रहे और ओवैसी चुपचाप मुस्कुराते हुए सुनते रहे। मौलाना के चुप हो जाने के बाद ही शो छोड़ा।

ये हैं उनके संस्कार उनकी निष्ठा अपने स्पिरिचुअल लीडर्स के प्रति। ओवैसी को अच्छी तरह अपनी हद पता है कि वह एक राजनेता मात्र है और वह मौलाना मजहबी नेता जिसका दर्ज़ा ऊंचा है। उनके संगठित होने कई कारणों में एक यह भी है।

वहीं दूसरी तरफ फुरसतिये हिंदू हैं। चार अक्षर क्या पढ़ लिये, ख़ुद को ब्रह्मांड भर के समस्त ज्ञान के स्वामी मानने लगते हैं। ज्ञान, विज्ञान, आध्यात्मिक जगत के प्रकांड विद्वान समझ बैठते हैं खुद को। आत्ममुग्ध विश्लेषक की तरह सलाह देने लगते हैं कि शंकराचार्य का चुनाव लोकतांत्रिक प्रक्रिया से या ऑनलाइन दंगल करवा के होना चाहिये। अपनी सारी ऊर्जा अनावश्यक विवाद में ही लड़ते भिड़ते समाप्त कर देते हैं।
शत्रु पचास साल आगे रणनीति के तहत काम कर रहे हैं और ख़ुद को महाज्ञानी समझने वाले फुरसतिया हिंदुओं को फालतू के विवादों से ही फुर्सत नहीं।

कभी कभी तो लगता है जैसे नीयति फिर से विध्वंस की नींव पर नव सृजन चाहती है।