1ºन्यायपालिका की भी सीमा तय होनी चाहिए। देश में ज्यूडिशल एक्टिविज्म बढ़ता जा रहा है आश्चर्यजनक है कि न्यायपालिका इलेक्शन कमिशन से यह स्पष्टीकरण मांग रहा है कि किसी प्रधानमंत्री के विरुद्ध यदि कोई शिकायत हुई है तो क्या उस पर इसी ने कोई कार्यवाही की गई। जबकि होना यह चाहिए कि न्यायालय यह बताएं कि इस प्रधानमंत्री के विरुद्ध यह शिकायत हुई उस पर इलेक्शन कमीशन ने क्या कार्यवाही की
न्यायपालिका में जज ही जज को नियुक्त कर रहे हैं क्या यही व्यवस्था सुप्रीम कोर्ट इलेक्शन कमिशन में भी चाहता है कि इलेक्शन कमिशन के मेंबर ही अगले इलेक्शन कमिश्नर को नियुक्त करें। यही व्यवस्था सीबीआई और ईडी में भी होनी चाहिए कि प्रेडिसेसर अपने सक्सेसर नियुक्त करें। समझ से बिल्कुल बाहर है कि आजकल सुप्रीम कोर्ट अपने सामने पेश किए गए मुद्दे से भटकता क्यों है। क्या ऐसा कोई वाक्य है कि इलेक्शन कमिशन से प्रधानमंत्री के विरुद्ध शिकायत की गई हो। सरकार के काम में इतनी दखलअंदाजी ठीक नहीं। सुप्रीम कोर्ट कर उन मुद्दों तक सीमित रहना चाहिए जो उसके समक्ष लाए गए हैं और यही हमारा संविधान कहता है।