1ºजो समाज संस्कृति धर्म ।।मानवता बराबरी की बात करते है.. यहां जगजाहिर हो रहा देश मे भ्रष्टाचार तो धोखाधड़ी लुटपाट है.. देश मे चंद अमीरों ने समाज संस्कृति समाज सामाजिकता पर हमला किया है.. तमाशबीन बना समाज अमीरों की फैशन आमजन की जिंदगी बदहाल.. मानव समाज मे आज जो गंदगी है फिल्मों नाटकों से फैल रही है.. गांव शहरों मे कामगारों तो किसानों कबिलाई संस्कृति पर यह ईष्र्या भेदभावपूर्ण चकाचौंध दिखावटी आधुनिक तकनीकी विकास का बेजा हमला है.. आमजन को ऐसी लोगों का बहिष्कार कर देना चाहिए.. अपने लोग समुदाय संस्कृति जहाँ सादगी है तवज्जो देना चाहिए मानवता ही वास्तविक है..
2ºभारत में अधिकतर विवाह समारोह रात्रि में आयोजित किए जाते हैं। यानि धूप का चश्मा लगाने की कोई तुक,कोई लॉजिक नहीं है। चलिए मान लिया कुछ 10-20% विवाह दिन में भी संपन्न होते होंगे। पर उसमें भी बीच सड़क पर,खुली धूप में तो फेरे नहीं लगवाए जाते। एक प्रॉपर मैरिज हाँल होता है जिसकी छत के नीचे जयमाला,फेरे आदि सभी कार्यक्रम संपन्न होते हैं। तो ये भारतीय दुल्हन के पूर्ण परिवेश में लहँगा-चुनरी,चूड़ियाँ, कंगन,नथ,माँगटीका,बिंदिया,लाली,हार यह सब धारण करने के बाद इन फैशन की दौड़ में अंधी हो चुकी हिंदू दुल्हनों की बुद्धि को क्या हो जाता है जो बिना किसी धूप के भी धूप का काला चश्मा पहनकर एंट्री मारकर अपने अच्छे खासे रूप श्रंगार का कचरा कर लेतीं हैं। ये तो मतलब वही बात हुई कि बिना बारिश के ही कोई रेनकोट पहनकर घूम रहा हो। धूप का चश्मा है या सुपरमैन की चड्ढी जो अनावश्यक रूप से पैंट के ऊपर पहनी होती है। पर फैशन का अंधानुकरण जो ना कराए वो थोड़ा।
भारत जैसे गरम देश को जब यूरोपीय फैशन के अंधानुकरण ने भीषण गर्मी की शादियों में भी कोट पैंट पहनना सिखा दिया तो आज की तारीख में तो ब्रेनवॉश करना पहले से भी अधिक आसान है। वैसे भी रेमंड शूटिंग शर्टिंग की टैगलाइन है 'द कंप्लीट मैन'। कौन सा पुरुष अपने आपको 'द इंकंप्लीट मैन' मान सकता है सो मई जून की शादी में भी भूरे,धूसर,काले,नीले यूरोपीय मौसम एंड मूड की नकल में किसी भी डार्क या डल कलर का कोटपैंट पहनकर पसीने से लथपथ घूमते रहते हैं।
बॉलीवुड फिल्में किस प्रकार आपकी बुद्धि हरकर आपको हँसी का पात्र बना सकती हैं जानने के लिए प्रथम चार चित्रों का अवलोकन कीजिए। फिल्म 'बार बार देखो' के एक गीत में पंडित,दूल्हा दुल्हन के मातापिता, रिश्तेदार सब काला चश्मा लगाकर बंदरों की तरह उछल-2 कर नाचते हैं।
बस,यहीं से और ऐसे ही कुछ और मूर्खतापूर्ण उदाहरणों, विज्ञापनों से हमारी इंस्टाप्रेमी युवा पीढ़ी ने इंस्टैंट लाइक कमेंट फॉलोअर्स कमाने का तरीका ढूँढ़ निकाला। विवाह जैसे जीवन में एक बार ही घटित होनेवाले अविस्मरणीय एवं अत्यंत पवित्र उत्सव को भी विक्षिप्तों जैसी वेशभूषा धारण कर अभद्रतापूर्ण हरकतें करने का अवसर बना दिया। पोस्ट में संलग्न चित्रों को देखिए। प्रथम चार व अंतिम दो एडवरटाइजिंग चित्रों के अतिरिक्त सभी चित्र वास्तविक हिंदू दुल्हनों के हैं जिनमें वे भारतीय वधू के पूर्ण श्रंगार के साथ आँखों पर काला चश्मा लगाए हुए हैं। कोई मतलब है बताइए वधू के गेटअप के साथ इस अनावश्यक एसेसरी का? धूप का चश्मा आवश्यकता की वस्तु है पर उसे पहनने के लिए धूप तो चाहिए या सिर्फ कटरीना दुल्हन के गेटअप में पहनकर नाची है तो हम भी जरूरी है वैसी ही मूर्खता करें?
मोतियाबिंद के मरीजों,सुधर जाओ वरना कल को ये बॉलीवुड इंस्पायर्ड फैशन वर्ल्ड फुल नेकेड भी फेरे लगवा देगा आपके और आप अपने सबकॉन्शियस माइंड के शिकार होकर ऐसा भी कर चलेंगे। थोड़ा सा तो सेंस रखिए। कुछ तो बुद्वि से काम लीजिए। यह बेवक्त,बेवजह दुल्हन के श्रंगार के साथ बंद हॉल में धूप का चश्मा,ये ट्रैंड तो मौसम,टाइम,गेटअप,अकेजन किसी भी लिहाज से लॉजिकल नहीं है भाई। ईश्वर इन अंधानुकरण करनेवालों को सदबुद्धि दें।
पता,दुल्हन की आँखों पर रोमांच,पुलक,हर्ष,झिझक,उछाह उमंग,शर्म,संकोच,प्रसन्नता की ओस अच्छी लगती है,ये नेत्रहीनों जैसा काला चश्मा नहीं।