पाखण्ड विज्ञान की लड़ाई... मजार दरगाह पे आई!

MP में छतरपुर के बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री इस वक्त सुर्खियों में हैं. उनके दावों को लेकर सवाल उठ रहे हैं. सोशल मीडिया पर बागेश्वर धाम वाले बाबा के वीडियो वायरल है. #ATVertical #BageshwarDham #DhirendraShastri

           

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पता नहीं आपके यहां ऐसे लोगों को क्या कहते हैं...लेकिन बागेश्वर धाम सरकार जैसे बाबा भारत के लगभग सभी इलाकों में होते हैं..उत्तराखंड में वहां ऐसे लोगों को गंतवा कहते हैं... गंतवा, पुरुष भी होते हैं और महिलाएं भी..इनके पास जाने वालों की भीड़ लगी रहती है... गंतवा और ज्योतिष में एक अंतर होता है..गंतवा आम तौर पर ये बताते हैं कि भूतकाल में आपके साथ ऐसा हुआ या आपने ऐसा किया, इसलिए आपका वर्तमान कष्टकारी है और इस कष्ट को दूर करने के लिए क्या किया जाए? जबकि ज्योतिष आपका भविष्य बताते हैं और भविष्य को सुधारने या संभावित कष्टों को दूर करने का उपाय बताते हैं..

हां, तो बात शुरू हुई थी बागेश्वर धाम सरकार से..और उत्तराखंड में उनके समवर्ती माने जाने वाले गंतवा से...ये लोग आपको फोर्स नहीं करते अपने यहां आने के लिए...श्रद्धा है तो आइए, वर्ना मत जाइए..कोई जबरदस्ती नहीं..फिर भी लोग जाते हैं? क्यों जाते हैं?

क्योंकि ये भारत है..यहां बिल्ली के रास्ता काटने से..किसी के छींकने से..किसी के पीछे से आवाज लगाने से लोग रुक जाते हैं..क्योंकि ये सब अशुभ माना जाता है..हमारे यहां हर काम लग्न और मुहूर्त देखकर किया जाता है..सबकी जन्मपत्री बनी होती है..मंगलवार को आमतौर पर बाल नहीं काटते.. मीट नहीं खाते..क्या ये सब अंधविश्वास नहीं है? लेकिन खुद को तर्कशील कहने वाले 99% लोग ऐसा करते हैं..कुछ खुलकर तो कुछ छुपकर इन अंधविश्वास पर भरोसा करते हैं..तो फिर बागेश्वर बाबा के अंधविश्वास से दिक्कत क्यों?
सच तो ये है कि दिक्कत बाबा के अंधविश्वास से नहीं है क्योंकि अंधविश्वासी तो कमोबेश हम सब हैं... बाबा से दिक्कत ये है कि सनातन धर्म को लेकर वो बीजेपी के नहीं बल्कि बजरंग दल के करीब नज़र आते हैं.. कतई कट्टर...बागेश्वर धाम सरकार लव जिहाद के भी खिलाफ हैं...पर्सनल लॉ के भी विरोधी हैं कॉमन सिविल कोड की मांग कर रहे हैं...धर्मांतरण कर चुके लोगों की घर वापसी करवा रहे हैं..ब्रिटिश संसद में जाकर जय श्रीराम के नारे लगवा चुके..अब जो इतना बड़ा सनातनी योद्धा हो, उसके खिलाफ तो मोर्चा खुलना ही था...ब्राह्मण होकर भी दलित-आदिवासियों के बीच उठते-बैठते हैं तो भीमटों की भी आंखों में खटक रहे हैं..

तो ऐसा है भइया ये जो अंधविश्वास और पाखंड के बहाने बाबा का विरोध कर रहे हों ना...इससे हमें तो मूर्ख मत बनाओ? इस पर्दे को गिरा दो..खुलकर मैदान में आओ...बता दो कि तुम्हें दिक्कत अंधविश्वासी बाबा से नहीं एक सनातनी योद्धा से है..मर्द बनो..सामने से आकर लड़ो...क्योंकि बाबा तो सीना ठोक कर मैदान में हैं..बजरंग बली ने लंका जलाई थी..बजरंग बली के इन भक्त बाबा ने सनातन विरोधियों की लंका लगाई है..

जा पर कृपा राम की होई।
ता पर कृपा करहिं सब कोई॥
जिनके कपट,दम्भ नहिं माया।
तिनके ह्रदय बसहु रघुराया॥
नोट-ये लेखक के निजी विचार है….आशीष शुक्ला..


दो लाइन आज के न्यूज़ चैनल के नाम -
आज के न्यूज़ चैनल ख़बरें कम कबूतर ज्यादा लड़ाते है | सभी पार्टी से एक एक कबूतर पकड़ेगे और उन्हें लड़ायेगे |
अगर किसी दर्शक से पूछा जाय कि आपने १ घंटे तक इस प्रोग्राम को देखा तो आप किस निष्कर्ष पर पहुचे | उसे कुछ पता नही होगा कि उसने क्या समझा |
क्या कभी किसी समाचार चैनल ने इस बात को जानना चाहा कि सरकार ने कौन कौन सी योजनायें चलाई है ? उसको लागू करने में क्या परेशानी है ? क्या जनता को उसका लाभ मिल रहा है ? कही कोई दलाली तो नही खा रहा ? जनता को अगर कोई परेशानी आ रही है तो क्या कोई शिकायत निवारण फोरम है ? अगर है तो क्या वह प्रभावी उपचार प्रदान कर रहा है ?
सेवा प्रदाता संस्थान अपना टोल फ्री नंबर जारी करती है | जैसे कि आपातकाल में रेलवे का 139 | लेकिन आपतकाल में कभी नंबर पर कॉल करके एक बार देखा किसी समाचार चैनल ने कि क्या कोई सहायता मिल भी पा रही है या केवल कंप्यूटर १ दबाओ या 2 दबाओ में ही समय बर्बाद कर रहा है ?
समाचार चैनल को लोकतंत्र का चौथा खम्भा कहा गया है लेकिन क्या ये लोकतंत्र पर बोझ बनते जा रहे है ?? सोचना होगा ....