बागेश्वर धाम में सुल्ताना बनीं सुरभि, धीरेंद्र शास्त्री को बनाया भाई, धर्म को लेकर कही ये बातें

बागेश्वर धाम में सुल्ताना बनीं सुरभि, धीरेंद्र शास्त्री को बनाया भाई #Chhattisgarh #BageshwarDhamSarkar

           

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इसे साफ अर्थो में जानें तो जो मानव को, मानवता को, समाज को और राष्ट्र को आपस में जोड़े वही धर्म है। जो मनुष्य को अधोगति में जाने से बचाए वही धर्म। इसके विपरीत जो भी है वह धर्म नही है यानी जो एक मनुष्य को दूसरे मनुष्य से लड़ाए वह अधर्म है। हिन्दू धर्म बुरा नहीं है बहुत सुन्दर है, परन्तु इस पर सवर्णों ने एका अधिकार किया हुआ है और उनके द्वारा चतुर्थ वर्ण को सदियों से उपेक्षित किया गया है , आज भी बदसूरत जारी है, जिसकी वजह से लोग बौद्घ धर्म जा चुके और निरन्तर जारी है, सवर्ण समाज के ही लोग अधिकांस, जगत गुरु, संक्राचार्य, आचार्य, पीठाधीश आदि बनते हैं, जो उपेक्षित समाज को आजादी के 75 साल बाद भी असमानता दूर करने में असफल रहे, उपेक्षित समाज इसलिए काफी पिछड़ गया है और उसकी नई पीढ़ी ये सब बर्दास्त नही कर पा रही है, क्या कोई सन्त ज्ञानेश्वर जगत गुरु, शंकराचार्य, पीठाधीश, आचार्य इसके लिए प्रयासरत हैं शायद नहीं, उस वर्ग की पीड़ा से अवगत होने की जरुरत भर नहीं समझते हैं।


Sadanand Mishra इसी प्रकार ब्राह्मणों में से कुछ आप जेसे कुछ ही, न कि सभी अच्छे विचार रख सकते हैं। बात गंभीर है जो समय रहते समझने की है, हो सकता है कि सनातन धर्म सबसे पुराना हो, लेकिन दुर्भाग्य ही है फिर टूटता क्यों रहा सदियों से जेसे बौद्घ बना होगा, जैन धर्म बना होगा, सिख धर्म बना होगा और तो और कुछ लोग ईसाई धर्म में भी चले गए, आज से आप खुद रोज सोचना शुरू करेंगे किसी से चर्चा नहीं भी करते तो 21दिन में आप खुद अनुभव करेंगे कि मुझे सही सोचने का यानि अपनी समझ जो विचार आए वो सभी आज के समय से पिछले समानांतर नहीं है, पढ़े लिखे समाज को वर्तमान को जीना है और सभी जीते हैं।


Sunayana Singh Tomar जितने भी दलित एक्टिविस्ट,जो मनुवाद मनुस्मृति को अपमान करतें है l जातिवादी बात करतें हैँ lइनमें से ज्यादतर के धार्मिक कर्मकांड ब्राह्मण ही करते हैं। दलित एक्टिविस्टों के घर का टॉयलेट भी कोई ब्राह्मण नहीं साफ करता होगा, दलित ही करता होगा। मुलायम और टोंटी यादव जिंदगी भर बुस्लिम वोट बैंक हड़पन के लिए हिंदुओं को गरियाते रहे, लेकिन पिताजी के गुजरने पर कर्मकांड और अंतिम धार्मिक क्रिया हिन्दू रीति रिवाज से ही हुई।

कई ऐसे है जो यहां ब्राह्मणों को गरिया रहे होते है और घर पर कोई ब्राह्मण सत्यनारायण भगवान की कथा पढ़ रहा होता है। सबके निजी स्वार्थ होते हैं। सब दो चेहरे लेकर जीते है इसलिए धीरेन्द्र शास्त्री पर निशाना साध रहे लोगों को उनकी पोस्ट से जज मत करिए। जब कोई आशा नहीं होती, ऐसे अनगिनत लोग आपको चमत्कारों की आस में मंदिर मजारों पर माथा टेकते मिल जाएंगे।

हाँ, चीन हमसे विज्ञान में आगे निकल गया क्योंकि चीन ने धर्म को त्याग दिया, धर्मगुरुओं को त्याग दिया लेकिन उसके पास आज सिर्फ पैसा ही है वह स्वतंत्रता नहीं जो हमारे पास है। चींटियों की तरह जीने की मजबूर हैं लोग। न प्रेस को अज़ादी है न वोक लिबर्ल्स को। अमेरिका में बहुत पैसा है,विज्ञान में तरक्की है लेकिन विविधता कहाँ हैं?

आपको ढेर सारा पैसा दे दिया जाए और आपकी आजादी छीन कर आधुनिक सुविधाओं के साथ चीन जैसे देश मे रहने को कहा जाए तो आप रह नही पाएंगे, क्योंकि वहाँ भौंकने की वह स्वतंत्रता नहीं है, जो यहाँ है। पश्चिमी या अरब देशों के पास बहुत पैसा है लेकिन वहां आपको सिर्फ एक ईश्वर को मानना होगा। हमने विज्ञान में तरक्की नहीं की, हमारे पास बहुत पैसा नहीं है, लेकिन हमारे पास स्वतंत्रता है।

हम शिव को म


सुहानी शाह vs पंडित धीरेन्द्र शास्री

पंडित धीरेन्द्र शास्री के बहाने यह लड़की सुहानी शाह कल से मीडिया में छाई हुई है जो पंडित धीरेन्द्र शास्री से अधिक चमत्कार दिखा कर आन एयर देश को बता रही है कि उसके अंदर यह गुण चमत्कार और कृपा जैसा कुछ नहीं है बल्कि यह मात्र एक कला है जो वह 7 साल की उम्र से कर रही है।

सुहानी शाह के यूट्यूब चैनल और इंस्टा पर ऐसे हज़ारों अंतर्यामी टाईप चमत्कार भरे पड़े हैं जो धीरेन्द्र शास्री अब कर रहे हैं।

आजतक की अंधविश्वासी ऐंकर श्वेता सिंह का बैंड बजाकर कल सुहानी शाह एबीपी न्यूज पर 2 घंटे तक बाबा धीरेन्द्र शास्री का बैंड बजाती रहीं।

सुहानी शाह ने इस कला का करीना कपूर से लेकर इंडियन आयडल तक के जजों तक के ऊपर प्रदर्शन किया है।

ऐसे ही एक और सख्स हैं "करन सिंह" जिन्होंने विराट कोहली से लेकर अनुराग कश्यप तक के ऊपर अपनी इस कला का प्रदर्शन किया है।

दरअसल कोई भी इसे कर सकता है, सीख सकता है, इस कला को मनोविज्ञान और ट्रिक के माध्यम से किया जाता है, जिसे करण सिंह "मनोविज्ञान अध्यात्मवादी" कहते हैं।

इसी कला के सहारे "माईंड रीडिंग" किया जाता है जबकि ट्रिक के सहारे किसी के दिमाग में वही सोचने के लिए मजबूर किया जाता है और मनोविज्ञान से उसके चेहरे और हाव भाव से उसके मस्तिष्क को पढ़ कर अंतर्यामी बनने का दावा किया जाता है।

यदि आप इस कला विद्या पर 10-15 साल काम करें तो आप भी इसमें सिद्धहस्त हो सकते हैं, किसी के मोबाइल या क्रेडिट डेबिट कार्ड का पासवर्ड बता सकते हैं, किसी के दिमाग में क्या चल रहा है पढ़ सकते हैं।

दरअसल जब जादू या चमत्कार देखने के माहौल और उम्मीद में आप रहते हैं तो अपना दिमाग सामने वाले के हवाले कर देते हैं, बाकी का काम उसके द्वारा किए जा रहे ट्रिक का होता है जिस पर आपका ध्यान भी नहीं जाता क्योंकि आप चमत्कार की आस में हैं और रोमांचित हैं।

वैज्ञानिक अर्थों में यह मनोविज्ञान, ट्रिक और इसके साथ किए लगातार अभ्यास के कारण मिले अनुभव से कोई भी इस कला में सिद्धहस्त हो सकता है।

कोई इसे दिव्यज्ञान कह कर भक्तों की धार्मिक भावनाओं का दोहन करते हुए भगवान बन जाता है तो कोई सुहानी शाह और करण सिंह की तरह इसे सिर्फ मनोरंजन तक सीमित कर लेता है..!

#शुभ_रात्री