क्या बागेश्वर धाम के धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को स्वीकार होंगे ये चैलेंज?

क्या बागेश्वर धाम के धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को स्वीकार होंगे ये चैलेंज? #DhirendraShastri #ATDigital #AajSubah

           

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बाबा हनुमान चालीसा में लिखते हैं, "अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता, अस बर दीन्ही जानकी माता" अर्थात हनुमान जी महाराज आठ सिद्धियों और नौ निधियों के अधिकारी देव हैं, दाता हैं। यह शक्ति उन्हें लक्ष्मी स्वरूपा जगतमाता जानकी से प्राप्त हुई थी।
ये आठ सिद्धियां हैं- अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, ईशत्व और वशित्व। अन्य की चर्चा फिर कभी करेंगे, पर इसमें जो छठवीं सिद्धि है प्रकाम्य, उसे प्राप्त कर लेने वाला साधक दूसरों के मनोभावों को सहजता से पढ़ लेता है। बिना अभिव्यक्त किये ही उसके मन की बातें जान लेता है।
प्रकाम्य सिद्धि के अधिकारी देव हनुमान जी महाराज हैं, वे ही हनुमान जी महाराज जो बागेश्वर धाम में पूजे जाते हैं। और धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री उन्ही के सेवक हैं। दूसरों के मन में चल रहे प्रश्नों को जानने का गुण उन्हें इसी सिद्धि से आया है।
धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को यह सिद्धि कितनी प्राप्त है यह मुझे ज्ञात नहीं, पर ऐसी सिद्धि लोग प्राप्त करते रहे हैं इसकी लम्बी परम्परा रही है। यह सिद्धि प्राप्त करने वाले वे न पहले व्यक्ति हैं और न ही अंतिम। उनके बाद भी लोग हनुमान जी महाराज की कृपा से इस सिद्धि को प्राप्त करते रहेंगे, क्योंकि सनातन परंपरा में इसका स्पष्ट विधान है।
इसपर आप भरोसा करें या न करें, यह आपका नितांत व्यक्तिगत चयन है। पर आप इसे खारिज नहीं कर सकते, क्योंकि हमारी परम्परा में इन सिद्धियों का विधान है, इसकी शिक्षा-दीक्षा होती रही है। पुस्तकें हैं, गुरु हैं। इन्हें प्राप्त करने के लिए सिद्ध स्थानों, पीठों में भटकना होता है और लम्बी तपस्या करनी होती है।
जिस प्रकार विज्ञान के किसी स्थापित नियम को खारिज करने के लिए आपको उस विषय के सम्पूर्ण ज्ञान की आवश्यकता होती है, वैसे ही आध्यात्म के किसी नियम को खारिज करने के लिए आपको उसका सम्पूर्ण ज्ञान होना ही चाहिये। अन्यथा कोई बकरी का चरवाहा कहे कि "आई डोंट विलिभ दैट अर्थ इज राउंड!" तो उसपर केवल हँसा जा सकता है, इसे उसके सामने प्रमाणित नहीं किया जा सकता।
अब प्रश्न यह है कि सनातन में तो इन सिद्धियों का विधान है, पर मरीज की छाती पर किसी मरी हुई नन का लॉकेट सटा कर उसकी कैंसर ठीक करने वालों के यहाँ इसका कौन सा विधान है? माथा छू कर गूंगी को वाणी दे कर "बोलने लगी" वाला चमत्कार दिखाने वाले बताएंगे कि उन्हें मिली उस शक्ति का नाम क्या है? वह कैसे मिलती है? कौन देता है? उसने किससे पायी यह शक्ति? इसका जिक्र उनकी किस पुस्तक में है?
पर उत्तर तो छोड़िये साहब! इस देश की बुद्धिजीविता, प्रगतिवादी लोग, विज्ञानवादी, पत्रकार तबका उनसे यह प्रश्न पूछने तक का साहस नहीं कर सकता। बिकॉज ही नो दैट, धन्धा बन्द हो जाएगा।
वैसे कोई मिले तो पूछियेगा।