गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या राष्ट्र को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू

गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या राष्ट्र को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू देखिए #Shankhnaad Chitra Tripathi के साथ | #ATLivestream

           

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#मगहर_लीला

परमेश्वर कबीर साहेब जी का सतलोक को सशरीर प्रस्थान
माघ माह शुक्ल पक्ष तिथि एकादशी विक्रम संवत 1575 (सन 1518) को कबीर साहेब जब मगहर से सशरीर सतलोक गये तब का वर्णन संत गरीब दास जी ने किया है कि
तहां वहां चादरि फूल बिछाये, सिज्या छांड़ी पदहि समाये।
दो चादर दहूं दीन उठावैं, ताके मध्य कबीर न पावैं।।

माघ माह शुक्ल पक्ष तिथि एकादशी विक्रम संवत 1575 (सन 1518) को कबीर साहेब ने एक चादर नीचे बिछाई और एक ऊपर ओढ़ ली। कुछ फूल कबीर साहेब के नीचे वाली चादर पर दो इंच मोटाई में बिछा दिये। थोड़ी देर में आकाशवाणी हुई कि मैं तो सतलोक जा रहा हूँ। जब लोगों ने देखा तो कबीर साहेब का शरीर वहाँ नहीं था बल्कि वहाँ शरीर के बराबर फूल मिले।

आदरणीय मलूकदास जी कहते हैं कि परमेश्वर कबीर जी मगहर से सशरीर सतलोक गए।
जपो रे मन सतगुरु नाम कबीर।
काँशी तज गुरु मगहर आये, दोनों दीन के पीर।
कोई गाड़े कोई अग्नि जरावै, ढूंडा न पाया शरीर।
चार दाग से सतगुरु न्यारा, अजरो अमर शरीर।

मगहर से सशरीर सतलोक गमन
कबीर परमेश्वर माघ माह शुक्ल पक्ष तिथि एकादशी विक्रम संवत 1575 (सन 1518) को मगहर से सशरीर सतलोक गये तो उनके शरीर के बराबर सुगंधित फूल मिले। जिसे हिन्दू व मुसलमानों ने आपस में आधे - आधे बाँटकर यादगार रूप में हिन्दुओं ने मंदिर और मुसलमानों ने मजार बना ली तथा हिंदुओं ने कुछ फूल ले जाकर काशी में कबीर चौरा बना दिया।
तहां वहां अविगत फूल सुवासी, मगहर घोर और चौरा काशी।

मगहर से सशरीर सतलोक गमन
आदरणीय संत गरीबदास जी महाराज ने कबीर साहेब द्वारा माघ माह शुक्ल पक्ष तिथि एकादशी विक्रमी संवत 1575 (सन 1518) को मगहर से हजारों लोगों के सामने से सशरीर अमरलोक (सतलोक) जाने का वर्णन करते हुए कहा है कि:-
देख्या मगहर जहूरा सतगुरु,
देख्या मगहर जहूरा हो।
काशी में कीर्ति कर चाले,
झिलमिल देही नूरा हो।