1ºकभी डिबेट में हम लोगों को भी बुलाओ ताकि दाल रोटी पर भी डिबेट हो जाए गरीब के छप्पर पर भी डिबेट हो जाए उस पगडंडी पर जहां चल पाना संभव नहीं है उसके दोनों तरफ नालिया बजबज आ रही हैं उस झोपड़ी में जो बरसात के दिनों में लगातार पानी छूटा रहता है कभी झोपड़पट्टी में जाकर रात में 2:00 पूछिए कि पनीर खाया है कि नहीं उनको भी डिबेट में बुलाई है और यह जरूर पूछिए कि उनका जीवन सुबह से शाम कैसे चलता है एक सामान्य आदमी कैसे अपना जीवन यापन इस वर्तमान परिस्थिति में कर रहा है क्या उसके पास कोई समस्या है कि नहीं
2º*पठान मूवी में विवादास्पद क्या है?*
भगवा रंग .......... नहीं, नहीं
पहले कहानी सुनिये.....
*भारतीय खुफिया एजेंसी RAW का एजेंट विलेन है*... क्या आपको लगता है कि हमारे RAW के एजेंट ऐसे हो सकते हैं??
पाकिस्तानी ISI एजेंट हीरोइन है, जो भारत की रक्षा कर रही है... *????* *क्या सपने में भी ऐसा हो सकता है?*
अफगानी पठान भारत की रक्षा कर रहा है... और क्या चाहिए यार... देश के गद्दार तो देखेंगे ही ना... और पसंद भी करेंगे।
*हमारी खुफिया एजेंसी RAW के (सेवानिवृत्त) एजेंट को बदनाम करने वाली कहानी ? को आखिर सेंसर बोर्ड कैसे पास कर देता है ?*
*पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI की एजेंट भारत को बचाने आ रही है यह भी सेंसर बोर्ड का हजम हो जाता है !*
और अफगानिस्तान का पठान यह सब कर रहा है । गजब है!
इन सबके बावजूद हमारा ध्यान सिर्फ भगवे रंग पर है।
कहानी के मूल में असल में हिंदुओं और भारतीयों को बदनाम करने का, anti national यानी गद्दार बताने का भारी षड्यंत्र है जिसे हम समझ ही नहीं पा रहे हैं।
*सबसे पहले सेंसर बोर्ड से निपटना चाहिए। सिनेमा थिएटरों पर नहीं, केंद्रीय फिल्म सेंसर बोर्ड के कार्यालय पर जाकर भारी प्रदर्शन करिए और और उनका दिमाग दुरुस्त करिए।*
1947 के पहले अंग्रेजों द्वारा बनाए गए सेंसर बोर्ड में आप देशभक्ति के गीत भी नहीं डाल सकते थे और अंग्रेजों को बदनाम करने वाली कोई कहानी पर फिल्म नहीं बना सकते थे। पर हम कितने गिर गए हैं कि हम हम भारतीयों को बदनाम करने वाली कहानी को बड़े आराम से पास कर दे रहे हैं । धिक्कार है हम हिंदुओं को/ भारतीयों को और हमारी सोच को।