12 से ज्यादा देशों में भगवान राम की मान्यता लेकिन विवाद सिर्फ भारत में

12 से ज्यादा देशों में भगवान राम की मान्यता लेकिन विवाद सिर्फ भारत में #BlackAndWhiteOnAajTak #RamNavami | Sudhir Chaudhary

           

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अबे ढक्कन... तेरी इस बकबास का मतलब क्या है... ये कोई न्यूज है क्या?

क्यूँ ज़हर फैला कर अपनी बां खुदा रहा है

राम नवमी है तो सभी हिंदू भाई अच्छी तरह मना रहे हैं?
इसमें आज मुसलमानों और मुगलों की बात का क्या लेना देना?
मुसलमानों को मुद्दे से जोड़े बिना तुझे रोटी नहीं मिलती ये हम जानते हैं

लेकिन क्यूं आम इंसान के मन में ज़हर भर रहा है ऐसा मत कर... ये नफरत की आग में तू भी जल जाएगा

पढ़े लिखे लोग सब जानते हैं कि किसने क्या किया किसने जमीने दान की... किसने बड़े बड़े पद पर हिदुओ को रखा किसने... हुकूमत होते हुए भी धार्मिक टेक्स हटाए
पहले की हुकूमत और लड़ाइयां सिर्फ सत्ता के लिए होती थी धर्म की नजर से होती तो मान सिंह सेनापति नहीं होता
आज भी कागज़ात मौजूद हैं

ये तेरी बकबास सिर्फ अनपढ़ लोगों को गुमराह कर सकती है पढ़े लिखे लोगो को नहीं


रामचरितमानस के बारे में जानते भी हो कुछ?
देश को त्रेता युग में ले जाना चाहते हो? आज से 12,96,000 साल पीछे ले जाना चाहते हो?
वाल्मीकि रामायण कोई तीन हज़ार साल पहले संस्कृत में लिखी गई थी।
बाद में तुलसीदास ने रामायण कोई 500 साल पहले लिखी थी।
रामचरित मानस को लिखने में तुलसीदास को २ वर्ष ७ माह २६ दिनों का समय लगा था। उसका लेखन विक्रम संवत् १६३१(१५७४ ईस्वी) मंगलवार, रामनवमी के दिन आरंभ किया गया था और समापन विक्रम संवत् १६३३ (१५७६ईस्वी)
तुलसीदास ने रामचरितमानस को लिखा है। ये था दुबे मतलब ब्राह्मण। पूरा कहानी ही फर्जी है लेकिन हिन्दू आस्था से जुड़ा है। हिन्दू होते है सीधे साधे लोग जो पढ़ा दो दिमाग में रख लेते है।
तुलसीदास ने श्रीरामचरित मानस में लिखा है - 'ढोल गवार शूद्र पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी।'
शूद्र, पशु और नारी ये तीनों अत्याचार,यातना, यन्त्रणा, उत्पीड़न देने के लायक है। क्या सोच था तुलसीदास का? अपनी माँ, बहन, हिन्दू कि महिलाओं को भी नहीं छोड़ा। फिर गाय को क्यों पूजते हो?
"सापत ताड़त परुष कहंता। बिप्र पूज्य अस गावहिं संता
पूजिअ बिप्र सील गुन हीना। सूद्र न गुन गन ग्यान प्रबीना "
मतलब है -शाप देता हुआ, मारता हुआ और कठोर वचन कहता हुआ भी ब्राह्मण पूजनीय है, ऐसा संत कहते हैं।शील और गुण से हीन भी ब्राह्मण पूजनीय है। और गुण- गणों से युक्त और ज्ञान में निपुण भी शूद्र पूजनीय नहीं है।
वाह क्या सोच था तुलसीदास पाण्डेय और संत बाल्मीकि का।
भीम राव अम्बेडकर ने संविधान का निर्माण कर इस मनुवादी सोच को जवाब दे दीया है।