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एक तरफ है ....एक डेढ़ सौ रूपये का फुल साइज टॉवेल जिससे मुँह छुपा रखा है, साथ है दोनों हाथ पकड़े पुलिस वाले, आगे गन लेकर चलते पुलिसवाले और सबसे आगे है धूल में मिलती इज्जत ... अब उसके भी आगे होगी लॉकअप में पूछताछ, कोर्ट में पेशी, वकील का जुगाड़, जमानत की कोशिश, जमानत नही मिली तो खुद को निर्दोष साबित करने की कोशिश, ये भी नही हुआ तो सजा कम करवाने की कोशिश ....

दूसरी तरफ था ... दोनों हाथ में लहराता भारतीय ध्वज, गले में टँगे ओलंपिक मैडल, साथ है अर्जुन अवार्डी गुरु और सबसे आगे है हर देशवासी का दिया सम्मान... उसके भी आगे था केंद्र सरकार और तमाम राज्य सरकारों की और से दो ओलंपिक पदक जितने पर दो -दो बार करोड़ो रूपये की इनाम राशि, फ्लैट, जमीन आदि ...

पीछे रह गई वर्षों तक अखाड़े में की गई हाड़ तोड़ मेहनत, पीछे रह गया गाँव के अखाड़े से दुनिया के अखाड़े तक तय किया सफर, पीछे रह गया एक माँ-बाप का गरूर जो बेटे की सफलता पर आँखो में चमक जाता था, पीछे रह गया एक पत्नी का अभिमान जिसका पति दो ओलंपिक मैडल जीता था...

'देश का बेटा' , 'देश की शान' से लेकर गुंडे, मवाली, माफिया से होते हुए एक हत्यारे तक का सफर इतना आसान नही होता ... लालच और हवस के दलदल में गर्दन तक उतरना पड़ता है तब एक 'सुशील कुमार' बनता है ।


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