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Anarchyगजोधर "असली वाला कट्टर हिंदू" था। शरीर पर भगवा कुर्ता, माथे पर लंबा सा तिलक और गले में भगवा गमछा। अच्छा, भले वह अपनी माली हालत की वजह से एक भी तीर्थ पर नहीं जा पाया था लेकिन अपने प्रदेश उत्तर प्रदेश में जहां कहीं भी मोदी जी की रैली होती थी वहां वह जरूर जाता था। कई बार तो जब फ्री की ट्रेन वगैरह की व्यवस्था नहीं मिल पाती थी तो अपने पैसे से ही चला जाता था। 2013 से उसने एक भी रैली नहीं मिस करी थी। इस चक्कर में उसको अपना 2 बीघा का खेत भी बेचना पड़ा था लेकिन देश और धर्म के नाम पर यह उसका तुच्छ सा त्याग था।

नोटबंदी और जीएसटी में इसके भाइयों की नौकरी चली गई लेकिन इसे कोई फर्क नहीं पड़ा। देश हिंदू राष्ट्र बन जाए यही उसका एकमात्र सपना था। फिर कोरोना आया। लाखों मरे। हजारों परिवार के पास तो इतना भी पैसा नहीं था की अपने परिवार के सदस्य की अंतिम क्रिया कर सकें। उन परिवारों ने अपने अज़ीज़ को यूं ही गंगा में बहा दिया। लाशें देखकर भी गजोधर नहीं पिघला था। उसे कोई ग्लानि नहीं थी।

लेकिन सत्ताधारी दल को फर्क शायद पड़ा था। आनन फानन में बैठक हुई और यह तय हुआ की सीएम बदला जाए। अब गजोधर परेशान है। वह मोदी को भी चाहता है और योगी को भी। दोनों उसे बहुत प्रिय हैं। लेकिन अब दोनों में बन नहीं रही। गजोधर समझ नहीं पा रहा की क्या करे। खबरें आईं की योगी ने धमकी दी है की भाजपा को तोड़ देंगे। बहुत दुखी था। उसे अपना सपना टूटता दिख रहा था। पहले उसने तय किया की अगर भाजपा टूटती है तो वह आत्महत्या कर लेगा लेकिन अपने मित्रों और गांव के लोगों के सामने शर्मिंदा नहीं होगा।

लेकिन उसके दिमाग में यह बात भी उठी की हिंदू राष्ट्र की लड़ाई लंबी है। मोदी "बुड्ढे" हो चले हैं। उनका दामन थामना बेकार हो सकता है। यही सोच उसने योगी को समर्थन देने का फैसला किया। उसने योगी के समर्थन में नारे, पोस्टर भी लगाए। उधर मोदी ने देश में एनआरसी की घोषणा कर दी। गजोधर के पास कागज़ नहीं थे। योगी जी की पुलिस ने पकड़कर गजोधर को रिफ्यूजी कैंप में डाल दिया। न ढंग का खाना, न ढंग का रहना। गजोधर की आंखें खुल गई थीं। लेकिन अब देर हो चुकी थी। अब तो वह रिफ्यूजी कैंप ही गजोधर का "हिंदू राष्ट्र" था।


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