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प्राचीन समय में ब्राह्मण अपरिग्रह होते थे अर्थात धन का संचय छोड़कर ज्ञान का संचय करते थे जिसके कारण दरिद्रता उन्हें विरासत में मिलती थी l धन संग्रह न करने के सिद्धांत के कारण द्रोणाचार्य जैसे महान धनुर्धर के बच्चे दूध के लिए तरसते थे l विप्र सुदामा सक्षम होकर भी दरिद्रता में रहे क्योंकि उनका सिद्धांत उनको रोक कर रखता था l अधिंकाश आर्थिक क्रियाकलापों पर शेष समाज का अधिकार था और विप्र समाज सक्षम होकर भी भिक्षुकों जैसा जीवन व्यतीत करने को विवश हुआ l अब परिस्थिति दूसरी है और उन्होंने अपने आप को पहचान लिया है, जिन्हें आपत्ति है वे श्राद्ध का अन्न खुद खा जायें या गरीब को खिला दें और कभी भूख लगे तो चले जाना उसी के यहाँ जिसे खिलाने पर तुम आपत्ति कर रहे हो वो भूखा रहकर भी भोजन कराने कि कुव्वत रखता है l

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मैं या मेरा परिवार भी नहीं जाता था श्राद्ध में भोजन करने को क्योंकी मेरा तो मानना था की श्राद्ध का भोजन करने से दरिद्रता घर में आ जाता है, लेकिन परम्परा चलता आया इसे तोडने की मैंने कभी कोशिश नहीं किया, और मैं चला जाता था भोजन करने के लिए , अगर मैं नहीं जाता तो मेरे घर में भी कोई नहीं आता किसी तरह का श्राद्धक्रम में भोजन करने के लिए इसलिए मैं जाया करता था, अगर कोई ब्राह्मण हमारे गांव में भोजन करने नहीं जाते थे तो घर पर आ कर लोग अनुरोध करते हैं और यह सारा वृतांत मेरा देखा हुआ है अगर फिर भी नहीं गए तो पूरा परिवार का भोजन घर मैं पहुंचा दिया जाता था , जो लोग घर के गाय को खिला देते थे,

रही ब्राह्मण जाति की तो ब्राह्मण के घर में जो मृत्यु होता है उसका भी श्राद्ध होता है या उसमे भी नियम से भोजन ब्राह्मण समेत गांव के हर जाति को कराया जाता है।

मुझे याद है 2016 में मेरे दादा जी का देहांत रांची में हुआ था लेकिन श्राद्धकर्म गांव और रांची में भी किया गया. जहां मात्र 5 ब्राह्मण समेत 300 व्यक्ति को भोजन कराया गया जो की मुझे भी मालुम नहीं कोन से जाति से संबंधित हैं,

और मेरे गांव में जो श्राद्ध हुआ उसमे 5 गांव का ब्राह्मण जो कि कम से कम 200 लोग शामिल हुए, और मेरे गांव का 7000 लोंगो को भोजन कराया गया, जो जाति के आधार पर है,
भूमिहार 3000 घर,
ब्राह्मण 200 घर,
कोईरी (कुशवाहा) 500 घर,
पासवान 100 घर ,
रजवार 150 घर,
यादव 25 घर,
राजपूत 100 घर चमार 20 घर,
मांझी (मुसहर) 100 घर,
डोम 5 घर,
पासी 50 घर के लोग
5 अघोरी बाबा समेत 200+7000+300+5= 7300 व्यक्ति ने भोजन किया!

जिसका खर्चा लगभग आठ लाख के करीब हुआ.
जब मेरा खिलाने का औकात ही नहीं रहता तो मैं इतने लोगों खिलाने का तो नहीं खिलाता इसलिए आपकी मर्जी है आप खिलाए ना खिलाए यह आपके क्षमता अनुसार है, आज की स्थिति ऐसा हो गया है कि किसी की मृत्यु पर कोई ब्राह्मण नहीं मिलता भोजन करने के लिए. किसी एक ब्राह्मण चलते पूरा ब्राह्मण समाज नहीं दोषी हो जाता आप लोग लगे गालियां देने लगते हैं अगर वही ब्राह्मण कोई एक गाली दे दो तो हर जाति के लोग उस पर टूट पड़ते हैं


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कुर्बानी में लाखो पशुओं की बलि दी जाए तो उनका #विश्वास.
श्राद्ध-पक्ष में लाखों पशु-पक्षियों को भोजन कराया जाए तो #अंधविश्वास. गजब के हैं तथाकथित #पशुप्रेमी.
#श्राध्द - #श्रद्धा का विषय है.
कोई कितना भी बड़ा मूर्ति पूजा का विरोधी क्यों न हो पर वह अपने प्रिय की फोटो पर थूक नहीं सकता. उसकी अपने प्रिय पर श्रद्धा है. जिनकी श्रद्धा अपने दिवंगत पुरखों पर है वे बहुत प्यार से अपने पुरखों को दाना पानी देते हैं, दान करते हैं. यह हिन्दू धर्म की रोचकता है. रोचकता शब्द का प्रयोग इसलिए किया गया कि मान लीजिए आप चाहते है कि पितरों को किश्तवार न खिलाकर एकमुश्त खिलाना तो आप #गया जाकर विधि विधान कर सकते हैं. कोई किश्तवार खिलाना चाहता है तो आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में श्राद्ध पक्ष तो आता ही है. धार्मिक किताबों में कहीं 5 तो कहीं 12 प्रकार के श्राद्ध का वर्णन है. श्राद्ध का अर्थ है पितरों की तृप्ति के लिए किया गया धार्मिक कृत्य.
आपका मन नहीं है किसी को खिलाने का मत खिलाइए - पर आप दूसरों पर व्यंग्य न करें. जिस प्रकार आप किसी के भोजन की थाली में रखी वस्तु को उसकी व्यक्तिगत आज़ादी की बात कह कर तर्क देते हैं कि किसी की थाली क्यों देखना - ठीक उसी प्रकार कोई ब्राह्मण को खिलाए , कौवे को खिलाए , भिखारी को खिलाए - आप काहे परेशान हैं.
आखिर यह भी तो उसका व्यक्तिगत मसला है.
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आज भी जिसे सरकार को घर बनाके ,फ्री का राशन ,मुफ्त शिक्षा,पीने को पानी,हर महीने मुफ्त की गैस,आरक्षण नौकरी में ,प्रमोशन में,६००० खाते में जीने रहने के लिए दे रही है,जिनको कपड़े तक सरकार मुहैया करा रही हैं ,घर घर सौचालय,फ्री बिजली,वो लोग भी ब्राह्मणों को भिखारी कहके गलियां दे रहे हैं।।हम तो यही जानते है हर घर में बड़े भाई का यही हाल है।।वो कितना भी संघर्ष करके हिंदुत्व रूपी परिवार को आगे बढ़ाए ।।लेकिन बाद में निकम्मे / निठल्ले छोटे भाई दारु शराब के साथ अय्याशी करके बड़े भाई को खुद का दुश्मन बता ही देते हैं।।और ये बताते है कि हमारा बड़ा भाई तो हमसे बहुत ईर्ष्या करता है।।मगर ये समझ लेना जिस ब्राह्मण को मुगलों का जजिया कर ६०० सताब्दी में नही झुका पाया था,वो तुमारे लिए खुद को झुका रहा है तो ये उसकी कमजोरी नहीं है।।बस भाई का भाई से प्रेम है।। क्योंकि जिस प्रताड़ना कि बात आज तथाकथित लोगो द्वारा कि जाती है।वो तो उसने कभी देखा भी नहीं है।।वरना तुम भिखारी कहके गलियां देकर कभी जा नही पाते।।सुधर जाओ,अभी भी वक्त है।।धमकी नही है,चेतावनी है।।बाहर के लोग इतना माफ नहीं करेंगे।।सीधे काट देंगे।।परिवार के हो इसलिए समझा रहा हु।।ब्राह्मण हमारे पूज्यनीय थे , पूज्यनीय है,और युगों युगों तक जब तक सूर्य और चंद्र रहेंगे तब तक वो हमारे लिए पूज्यनीय रहेंगे।।तुम हमारा देखी देखा क्यों बुलाते हो ब्राह्मण को।।वैसे भी तुम कुकर्मियों जिन्हे हिंदुत्व संस्कार का ज्ञान नहीं, उनके यहां भोजन से अच्छा है ब्राह्मण भूखे मर जाए।।।ऐसे ब्राह्मणों का विनाश भी हो जाता है।।यह कड़वा सत्य है।।भोजन भजन ये भाव का विषय है।।और ये भाव dead body खाने वालों कि समझ से बाहर है।।

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Aaj tak news s kuch khna chahta hu mne isme kai logo k sb pde koi khta h grib ko khilao m khta hu acchi baat h pr jb bhi braman ki baat aati tho kyu itna sara babal kiya jata kyu hota h aisa aap jante ho is dhrti pr roj knhi na knhi kise ki maut ho gyi knhi bhukam aa gya badal ft gya kyu hota h mujhe nhi pta pr mne bujurgno se suna h jo bhgwan ka apman krte h ma baap ka apman krte h apne guru ka apna krte braman ka apna krte h tho aisa hota h or hota rhega aap tho news wale ho aapko kya aapko tho sirf trp or mrp s mtlv hota h

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