1 टिप्पणियाँ

आरएसएस गिरोह कैसे साम्प्रदायिकता के माध्यम से इकॉनमी को ध्वंस कर रहा है, इस बात को सहज़तम तरीके से समझिए..हर दंगा आपके ख़िलाफ़ एक आर्थिक युद्ध है..व्हाट्सएप पर फॉरवर्ड कीजिए..
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★★ आज़कल माइनॉरिटी को ख़त्म करने का दौर है..मैं जब "माइनॉरिटी" लब्ज़ का इस्तेमाल करता हूँ तो उसमें भारत के हर कमज़ोर/आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग की बात करता हूँ..इसे धर्म के नज़रिए से देखना ग़लत होगा..

1. अभी समझने की आसानी के लिए मान लीजिए कि भारत मे 27 करोड़ धार्मिक माइनॉरिटी है (135 करोड़ X 20% = 27 करोड़)

2. मान लीजिए कि ये 27 करोड़ लोग रोज़ 10₹ ख़र्च करते है..तो 1 महीने का ख़र्च/डिमांड : 8100 करोड़ (27 करोड़ X 10₹ X 30 दिन)

3. एक साल का ख़र्च/डिमांड : 97,200 करोड़ (8100 करोड़ X 12 महीने)

4. इस 97,200 करोड़ पर 12% के हिसाब से 1 साल की GST : 11,664 करोड़ (97,200 करोड़ X 12%)

5. यानी केवल 10₹ रोज़ के ख़र्च के हिसाब से देश को 11,664 करोड़ का सालाना घाटा है..इसे आप 20₹, 50₹, 100₹ से जोड़ लीजिए..पता चलेगा कि कैसे बरबादी आ रही है..

◆ ये धार्मिक माइनॉरिटी हर धर्म/जाती/कौम से अपनी ज़रूरत का सामान ख़रीदती है..अम्बानी/अडानी/टाटा/बिड़ला से भी ख़रीदती है..धार्मिक मेजॉरिटी ही ज़्यादा व्यापार करते है..

◆ धार्मिक माइनॉरिटी पर हमले से सबसे ज़्यादा नुकसान धार्मिक मेजॉरिटी को है..उद्योगपतियों को है, सरकार को है..और देश का नुकसान तो आप कल्पना भी नही कर सकते..

◆ 10₹ जब बाज़ारों में एक चक्कर लगा कर बैंकों में पहुंचता है तब वो 100₹ बन चुका होता है..अगर किसी इकॉनमी में 27 करोड़ जनता ख़त्म हो जाए तो उस इकॉनमी को परवरदिगार भी नही बचा सकता..

धर्म भी इकॉनमी का एक हिस्सा है..पर धर्म अगर इकॉनमी को चलाने लगे तब धर्म/इकॉनमी दोनों ख़त्म होना तय है..


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