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सवाल वहीं खड़ा है जो आपने पिछली पोस्ट में लिखा है अपने लिए नही जनता के लिए, जनता के मुद्दों के लिए बेरोजगारी, मंहगाई, भुखमरी, भाजपा का संस्थागत भ्रष्टाचार, आर्थिक दुर्दशा, सरकारी संस्थानों को बेचा जाना, किसानों, असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की समस्यायें, छोटे छोटे दुकानदारों, लघु उद्यमियों, रेहड़ी पटरी ठेलेवालों की समस्याएं मुंह बाए खड़ी हैं इसके संघर्ष में दोगलापन नही चाहिए, सोनिया गांधी की आज ईडी के समक्ष पेशी का विरोध करने के लिए कल ही रणनीतिक फैसला लिया गया सत्याग्रह करने के लिए , और वैसा ही पोस्टर जांच एजेंसियों का दुरूपयोग का पोस्टर लेकर राहुल गांधी की अगुवाई में मार्च निकाली गई, जिसमें उनको रोके जाने पर वो जमीन पर बैठ गए और फिर गिरफ्तार कर लिए गए, लेकिन पत्रकारों को राहुल गांधी बाइट देते हैं कि हमें संसद में मंहगाई पर नही बोलने दिया जाता है और अब सड़क पर भी नही बोलने दिया जा रहा है।
अरे भाई कांग्रेस परिवार के ऊपर ईडी की नाजायज कार्रवाई का विरोध अवश्य करे परन्तु इसे जनता के मुद्दों से जोड़ कर इतिश्री न कर ले। जनता के इन मुद्दों के लिए कांग्रेस को निर्णय लेकर खुले रूप से सत्याग्रह, रैली, मार्च, आंदोलन जेल भरो आंदोलन अनवरत चलाना चाहिए राहुल गांधी की ही अगुवाई में बिल्कुल गांधीवादी तरीके से सत्य और अहिंसा के हथियारों से जब तक मोदी सरकार को 2024 में उखाड़ कर फेंक नही दिया जाता है।
क्या यह कुव्वत है सोनिया राहुल प्रियंका गांधी की कांग्रेस में, सवाल यही है जिसका जवाब राहुल गांधी को देना है अगर महात्मा गांधी जवाहरलाल नेहरू इंदिरा गांधी जैसा कुछ भी जज्बा है इनमें सत्याग्रह आंदोलन करने का।


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