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आदरणीय संचार मंत्री जी को बहुत बहुत आभार कर्मचारी 2017से वेतन आयोग नहीं मिल रहा है कर्मचारी निराश हैं इसलिए आपसे निवेदन है कि हमारे कर्मचारियों दुखी हैं आपसे आशा है
कि करमचारी को वेतन आयोग को गठित किया जाएगा अधिकारियों को वेतन आयोग गठित किया गया है कर्मचारी को वेतन आयोग गठित नहीं किया है कर्मचारी से भारत सरकार भेदभाव किया जाता रहा इसलिए आपसे निवेदन है कि हमारे कर्मचारियों को केंद्रीय कर्मचारी से लेकर आज तक हमारे इतिहास में पहली बार किसी सरकार ने किया है आपसे आग्रह है कि हमारे कर्मचारियों को सैलरी को लेकर चलना चाहिए केंद्रीय कर्मचारी विरोधी सरकार है जहां सरकारी काम होता है बीएसएनएल कर्मचारी कोई पुरा मेहनत से काम होता है बीएसएनएल कर्मचारी बहुत दुखी हुए और अधिकारियों को लूटने वाले गिरोह को फोकस करके मोदी जी आपसे निवेदन है और आशा करते जय श्री राम


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अब्राहम लिंकन के पिता जूते बनाते थे,

जब वह राष्ट्रपति चुने गये तो अमेरिका के अभिजात्य वर्ग को बड़ी ठेस पहुँची!

सीनेट के समक्ष जब वह अपना पहला भाषण देने खड़े हुए तो एक सीनेटर ने ऊँची आवाज़ में कहा,

मिस्टर लिंकन याद रखो कि तुम्हारे पिता मेरे और मेरे परिवार के जूते बनाया करते थे!

इसी के साथ सीनेट भद्दे अट्टहास से गूँज उठी!

लेकिन लिंकन किसी और ही मिट्टी के बने हुए थे!

उन्होंने कहा कि, मुझे मालूम है कि मेरे पिता जूते बनाते थे!

सिर्फ आप के ही नहीं यहाँ बैठे कई माननीयों के जूते उन्होंने बनाये होंगे!

वह पूरे मनोयोग से जूते बनाते थे, उनके बनाये जूतों में उनकी आत्मा बसती है!

अपने काम के प्रति पूर्ण समर्पण के कारण उनके बनाये जूतों में कभी कोई शिकायत नहीं आयी!

क्या आपको उनके काम से कोई शिकायत है?

उनका पुत्र होने के नाते मैं स्वयं भी जूते बना लेता हूँ और यदि आपको कोई शिकायत है तो मैं उनके बनाये जूतों की मरम्मत कर देता हूँ!

मुझे अपने पिता और उनके काम पर गर्व है!

सीनेट में उनके ये तर्कवादी भाषण से सन्नाटा छा गया

और इस भाषण को अमेरिकी सीनेट के इतिहास में बहुत बेहतरीन भाषण माना गया है

और उसी भाषण से एक थ्योरी निकली Dignity of Labour (श्रम का महत्व)

और इसका ये असर हुआ की जितने भी कामगार थे उन्होंने अपने पेशे को अपना सरनेम बना दिया जैसे कि - कोब्लर, शूमेंकर, बुचर, टेलर, स्मिथ, कारपेंटर, पॉटर आदि।

अमरिका में आज भी श्रम को महत्व दिया जाता है इसीलिए वो दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति है।

वहीं हमारे देश भारत में जो श्रम करता है उसका कोई सम्मान नहीं है वो छोटी जाति का है नीच है।

यहाँ जो बिलकुल भी श्रम नहीं करता वो ऊंचा है।

जो यहाँ सफाई करता है, उसे हेय (नीच) समझते हैं और जो गंदगी करता है उसे ऊँचा समझते हैं।

ऐसी गलत मानसिकता के साथ हम दुनिया के नंबर एक देश बनने का सपना सिर्फ देख तो सकते है, लेकिन उसे पूरा कभी नहीं कर सकते।

जब तक कि हम श्रम को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखेंगे।

जातिवाद और ऊँच नीच का भेदभाव किसी भी राष्ट्र निर्माण के लिए बहुत बड़ी बाधा है।

— बेनाम लेखक


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