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Tashkeel Khan Tashkeel अरे भाई एक मैं ही हूँ जिसने धर्म का चश्मा नहीं लगाया।तभी तो जूते खा रही हूँ ।कोई तो समझे।जब लङका बीमार हुआ तो हर जगह इलाज करवाया ठीक नी हो रा था तो जिस दरगाह पे मेरे पति व देवर चद्दर चढाते थे वहां ले गये वहां जो पंडित थे या जो भी थे उन्होंने बङे प्रम से इसके झाङा लगाया उसी से ठीक हुआ।जब औलाद को कुछ होता है ना तो सारे चश्मे उतर जाते हैं ।फिर जब बेटी हुई तो तबियत खराब हुई तो रोने लगी क्योंकि हिन्दुओं ने बाई भगा दी।शहर में नयी आई थी और कोई साधन नहीं था।तब मुल्ला जी रोने की आवाज़ सुन के आए।और पूछने लगे क्या हुआ बेटा?तो मैं जोर जोर से रोने लगी कि मुश्किल पङते ही बाई भगा दी गयी।कहने लगे कि बस इतनी सी बात ।चुप हो जाओ रो मत।तभी ये आ गये औफिस से तो पूछने लगे कि क्या हुआ?तो सब थे वहां ।तब मुल् ला चाचा ही सहारा बन के खङे हुए।इनसे बोले कल सुबह एक से एक बाई और खाने वाली की लाइन लगा दून्गा।साहब मैं हूँ आप चिन्ता मत करना।फिर बोले कि वो औरत ही क्या जो औरत की मुश्किल ना समझ सके।मुसीबत में छोङ गयी उसके लिए क्या रोना।इसीलिए आज मैं व मेरा दूसरा बच्चा जिन्दा है।और मुझपे इल्जाम है कि मैं आतंकवादी से बोलती हूँ ।मुल्ला चाचा कह रहे थे कहने दो हम फौजी थे वहां ऐसी देशभक्ति की ट्रेनिंग दी जाती है कि जात पात सब भूल जाती है।अब मैं धर्म का चश्मा कैसे पहनूँ ।जो बात सही वो सही जो गलत वो गलत।जिसके लिए जो लगा बोला मगर बिना चश्मे के।अगर किसी को औब्जैक्शन है तो कोई हिन्दू तब मदद को क्यों नहीं आया था?

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