2 टिप्पणियाँ

इस बार 2024 मे मोदी जी का सत्ता में आना बहुत ही चुनौती पूर्ण होगा! !! क्योंकि >>>मोदी जी ने सभी सब्सिडी खत्म करके रसोई गैस 1100₹ कर दिया।।। >>>किसानों के उर्वरक महंगे कर दिए>>>>GST (राहुल जी के अनुसार गब्बर सिंह टैक्स) मैं पहिले आम जरूरत की चीजे कुछ तो फ्री थीं लेकिन अधिकतर वे 5 %की रेंज में थीं उनको बढ़ाकर 15 % में ठोक दिया जनता कराह उठी और जो 12%की रेंज में थीं उनको 28% की रेंज में ठोक दिया,, यहां तक कि दूध छाछ,, पैक्ड राशन जो फ्री था उस पर भी जीएसटी ठोक दिया।>>> दो साल से इनकम टैक्स की रेंज न बढ़ाकर मध्यम वर्ग की क्रय शक्ति छीन ली।। भाजपा सोचती हैं कि राम मंदिर निर्माण पर सबको भाजपा मैं वोट डालने के लिए विवश कर लेगी यह उसकी बहुत बड़ी भूल होगी,, मोदीजी का भाषण जो लोग सुनते थे अब ऊब चुके हैं, क्योंकि आम जनता भाजपा की महंगाई बढ़ाने वाली नीतियों से आक्रोशित है।। तो ऊंट किस करवट बैठेगा कोइ नही जानता और अब विपक्ष में पलटू चाचा जैसे धुरंधर बल्लेबाज सक्रिय हैं ।।

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भक्त और चमचे में क्या अंतर होता है?

1.भक्त देश हित मे सोचते है जबकि चमचे केवल अपने और अपनी पार्टी के बारे सोचते है

2. भक्त अंध नही है जबकि चमचे अंधे होते है

3. भक्तो की एक बड़ी संख्या पढ़े -लिखे लोगो की है जबकि चमचे आज तक अनपढ़ और गवार है ।

4. भक्त की भक्ति में निस्वार्थ प्रेम होता है जबकि चमचे की चमचागिरी में अवसरवादिता और लालच होता है ,ये लोग हमेशा अपने स्वार्थ के लिए चमचागिरी करते है ।

5. भक्तों की भक्ति अनन्त काल से है जबकि चमचो को चमचागिरी करते हुए 70 वर्ष हो चुके है ।

6. भक्तो की भक्ति सभी लोगो को कल्याण के लिए प्रेरित करती है जबकि चमचो की चमचागिरी से केवल कुछ लोगो का ही भला हो पाया ।

7. भक्त केवल योग्य व्यक्ति की भक्ति के लिए चुनते है जबकि चमचे किसी भी अयोग्य व्यक्ति को अपने स्वार्थ के लिए योग्य साबित करने पर तुले रहते है ।

भक्त में भाव प्रधान होता हैं. हरद्धा कि महत्ता होती हैं. भक्त भगवान को प्रिय हैं. भक्त हैं तो भगवान हैं नहीं तो कुछ नहीं. अतः स्वामी और सेवक का सम्वन्ध भक्त और भगवान में होता हैं और दोनों एक दूसरे को समर्पित होते हैं. जैसे मीरा बाई, सूरदास विट्ठलदास, हरिदास, वल्लभाचार्य, स्वामी चैतन्य महाप्रभु और श्रीला प्रभुपाद भक्त थें. ये चमचई नहीं करते बल्कि समर्पण करते हैं ये भगवान में बुराई नहीं देखते बल्कि बुराई को दूसरा हि रंग डे देते हैं.

चमचा तो चमचा हैं. इसमें अवसरवादिता मुख्य होती हैं. चमचा जैसे हि मौका पता हैं अपने स्वामी मालिक को भी पटकी लगा देता हैं. स्वामी भी चमचे कि इस आदत को पहचानता हैं और दोनों स्वामी और चमचा में समर्पण भाव और श्रद्धा का अभाव होता हैं और विश्वास कि कमी होती हैं. ये आपसे में खूब झगड़ा लेते हैं फिर स्वार्थवश एक हो जाते हैं.


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