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जरा सोचिए जब कातिल ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया है तो किस सबूत की अब जरूरत रही। नहीं यह भीमराव अम्बेडकर का संविधान है यहां पर आरोपी को नहीं पीड़िता पक्ष को यह साबित करना है कि उसका कत्ल हुआ। अब पुलिस सबूत ढूंढ रही है। श्रद्धा की लाश ढूंढ रही है और औजार ढूंढ रही है कोर्ट में यह बताने के लिए कि यह श्रद्धा है और मर गई है। कातिल चाहे कितना भी जुर्म स्वीकार करें पर अंबेडकर का संविधान कहता है कि नहीं ,आपकी जिम्मेदारी कोर्ट को यह बताने की नहीं है अब आप जेल के दामाद बन करके रहिए पुलिस का काम है कोर्ट को बताना। साल दो साल में आपकी बेल हो जाएगी आप भारत में आजादी से घूम सकते हैं। इसी संविधान की रक्षा के लिए सारी विपक्षी पार्टियां लगी रहती हैं

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