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पत्रकारिकता का गिरता स्तर
डेमोक्रेसी की 4 स्तंभों में से एक पत्रकारिता है। मगर समय के साथ बदलते समाज के साथ यह भी बादल रहा है। जहां सोशल मीडिया ने सभी लोगों के हाथ में पत्रकारिकता थमा दी है वहीं शायद इसके गिरते स्तर को भी तेजी से दी है। आज हर कोई पत्रकार है अपनी कहानी अपने ढंग से परोस रहा है। पहले एक खबर के पीछे मेहनत होती थी लोग उसे फॉलो करते थे मगर आज के समय में खबर आती है और अगले दिन बासी हो जाती है। शायद यही वजह है कि इतने न्यूज चैनल हैं जिन के संपादक के अलावा शायद ही कोई भाऊ भी देता हो। बस हर शाम लोगों के आगे आकर चिल्लाना है पत्रकारिकता रह गई हो। शायद यह भी बदलते समाज का ही प्रतिबिंब हो, जहां रोष और सनसनीखेज़ खबरों के खरीददार ज्यादा हो। सोशल मीडिया ने तो सभी को ही पत्रकार बना दिया है। एक मोबाइल फोन हो और बन गए पत्रकार। जहां कुछ दिखा बिना पड़ताल डाल दिया सोशल मीडिया में और बन गई सनसनी। बात सिर्फ इतने पर ही रुकती तो भी काफी थी मगर राष्ट्रीय समाचार चैनलों की होड़ में शायद समाचार का स्तर इतना गिर गया है कि एक 30 सेकंड के क्लिप पर 30 मिनट का समाचार बन जाता है जिसकी विश्वसनीयता को परखने का भी वक़्त इन चैनलों के पास नहीं होता है। बस फेसबुक वॉट्सएप से क्लिपिंग उठाई चिल्ला चिल्ला कर लिए चैनल पर और बन गया समाचार।
वक़्त शायद अभी आया नहीं है कि हम पत्रकारिकता से यह उम्मीद करें कि हमें सच्ची खबर मिले और पूरी खबर मिले।
"I'll tell the truth and nothing but the truth" और
"I'll tell the truth, the whole truth and nothing but the truth" के अंतर ने द्रोणाचार्य से उनके प्राण ही हर लिए।
बस और क्या लिखूं


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