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सन्यासी कभी कायर,व्यापारी,वेद विरूद्ध हिंदूवादी लौकेष्णाओं से ग्रस्त महाझूठे, फेकू जुमलेबाज देश बेचू व देश को गौमांस निर्यात में विश्व का टापर बनाए रखने वाले नेताओं का अंधसमर्थक नही हो सकता है। सत्य सिर्फ सदजन,आर्य,धार्मिक, विद्वान,वीर को ही प्रिय लगता है।वही दुर्जन,ढोंगी,कायर पाखंडी, लौकेष्णाग्रस्त को कढ़वा ही लगता है।दोहराचरित्र महर्षि दयानंद जी का शिष्य नही अपना सकता है।मांसाहारी, शराबी और देश की अक्रांता हुकूमत को मौन समर्थन देने वाले विवेकानंद से महर्षि दयानंद की क्या तुलना हो सकती है?सन्यासी किसी राजनैतिक दल का प्रवक्ता भी नही हो सकता है।जिन्हें सत्य ज्ञात नही है,वह पहले पता कर लें।जो कहा,वह शत प्रतिशत सत्य है।

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